लालची लकड़हारे की कहानी हिंदी में | Lalchi Lakadhara Ki Kahani

इस लेख के माध्यम से हम आपको हिंदी में “लालची लकड़हारे की कहानी हिंदी में | Lalchi Lakadhara Ki Kahani” सुनाएंगे। यह कहानी लालची लकड़हारे के बारे में है, जो हमें समझदारी और संयम की महत्वपूर्ण कहानी सुनाती है। इस लेख को पढ़कर आप मनोरंजन के साथ-साथ सीख भी प्राप्त करेंगे।

लालची लकड़हारे की कहानी हिंदी में

सोहनपुर गाँव में रामलाल नाम का एक लकड़हारा रहता था। वो अपनी जीविका चलाने के लिए गाँव के पास के ही जंगल से रोज़ लकड़ियाँ चुनता और उन्हें बेचकर कुछ पैसे कमा लेता था। इसी तरह उसका गुज़ारा चल रहा था।

कुछ दिनों के बाद रामलाल की शादी हो गई। उसकी पत्नी बड़ी खर्चीली थी। इसलिए, अब उतनी लकड़ियों को बेचकर घर चलाना मुश्किल हो गया था।

लालची लकड़हारे की कहानी हिंदी में | Lalchi Lakadhara Ki Kahani
लालची लकड़हारे की कहानी हिंदी में | Lalchi Lakadhara Ki Kahani

ऊपर से रामलाल की पत्नी कभी नए कपड़े ख़रीदने के लिए, तो कभी किसी दूसरी चीज़ों के लिए रामलाल से बार-बार पैसे माँगती थी। अगर पैसे न मिलें, तो रूठ जाती।

रामलाल अपनी पत्नी से बहुत प्यार करता था, इसलिए उसकी नाराज़गी वो बर्दाश्त नहीं कर पाता था। रामलाल ने ठान लिया कि वो अब ज़्यादा लकड़ियाँ इकट्ठा करके बेचेगा, ताकि उसकी पत्नी को रोज़-रोज़ पैसों की कमी न हो।

पत्नी की इच्छा पूरी करने के लिए आज रामलाल घने जंगल तक चला गया और बहुत सारी लकड़ियाँ चुनकर बाज़ार में बेच दीं।

ज़्यादा लकड़ियों के ज़्यादा पैसे मिले, तो ख़ुश होकर रामलाल ने सारे पैसे अपनी पत्नी को दे दिए। अब रोज़ रामलाल ऐसा ही करने लगा।

देखते-ही-देखते उसके मन में लालच इतना बढ़ गया कि उसने धीरे-धीरे पेड़ काटना भी शुरू कर दिया। पेड़ काटने से और ज़्यादा लकड़ियाँ हो जाती थीं और उसे अधिक दाम मिलने लगे।

लकड़हारा हर हफ़्ते एक पेड़ काटता और लकड़ियाँ बेचकर मिलने वाले पैसों से अपनी पत्नी के शौक पूरे करता। अब पैसे ज़्यादा आ रहे थे, तो घर भी अच्छे से चल रहा था।

धीरे-धीरे रामलाल ने पैसों को जुए में लगाना शुरू कर दिया। जुआ खेलने की लत ऐसी लगी कि रामलाल एक मोटी रक़म इसमें हार गया।

अब इस रक़म को चुकाने के लिए रामलाल ने एक-दो मोटे-मोटे पेड़ काटने का फ़ैसला लिया।

जैसे ही रामलाल ने जंगल में जाकर अपनी कुल्हाड़ी को एक बड़े से पेड़ पर चलाने की कोशिश की, तो उसपर पेड़ की टहनी ने हमला कर दिया। रामलाल चौंक गया। फिर उसे पेड़ की एक टहनी ने लपेट लिया।

रामलाल कुछ समझ नहीं पाया कि यह सब क्या हो रहा है। तभी पेड़ से आवाज़ आई। “मूर्ख, तू अपने लालच के चक्कर में मुझे काट रहा है।

तू सारे पैसे जुए में लुटा देता है और फिर पैसे लौटाने के लिए पेड़ काटने आ जाता है।”

“तुझे पता है कि पेड़ कितने कीमती होते हैं। हमारे अंदर भी जान बसती है और हम तुम इंसानों को जीने के लिए हवा, धूप में छाया, और भूख को शांत करने के लिए फल देते हैं।

लेकिन, तू अपने स्वार्थ के लिए हमें ही काट रहा है।” पेड़ ने कहा, “आज तू रूक, यही कुल्हाड़ी मैं अब तेरे ऊपर चलाऊँगी।”

पेड़ की टहनी कुल्हाड़ी से रामलाल पर वार करने ही वाली थी कि वह गिड़गिड़ाने लगा। उसने माफ़ी माँगते हुए कहा, “मुझसे गलती हुई है, लेकिन मुझे सुधरने का एक मौका दो।

अगर आप मुझे मार दोगे, तो मेरी पत्नी का क्या होगा? वो अकेली पड़ जाएगी। आज से मैं किसी पेड़ को नहीं काटूँगा, यह प्रण लेता हूँ।”

यह सब सुनकर पेड़ को रामलाल के ऊपर दया आ गई। उसने रामलाल को छोड़ दिया। छूटते ही रामलाल भागकर अपने घर गया और पैसों के लालच में न आने का संकल्प ले लिया।

यह कहानी से हमने सीखा

लालच में आकर पर्यावरण के साथ खिलवाड़ नहीं करना चाहिए। हमें ऑक्सीजन पेड़ से ही मिलती है। इन्हें काटकर हम खुद अपने जीवन में संकट को ला रहे हैं।

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