हाथी और दर्ज़ी की कहानी हिंदी में | Hathi Aur Darji Ki Kahani

इस लेख के माध्यम से हम आपको हिंदी में “हाथी और दर्ज़ी की कहानी हिंदी में | Hathi Aur Darji Ki Kahani” सुनाएंगे। यह कहानी हाथी और दर्ज़ी के बीच की एक मज़ेदार कहानी है जो हमें समझदारी और मेहनत की महत्वपूर्णता को समझाती है। इस लेख को पढ़कर आप मनोरंजन के साथ-साथ सीख भी प्राप्त करेंगे।

हाथी और दर्ज़ी की कहानी हिंदी में

सालों पहले एक गाँव रत्नापुर में एक जाना-माना मंदिर था। उस मंदिर में रोज़ एक पुजारी पूजा-पाठ करता था। उस पुजारी के पास अपना एक हाथी था, जिसे वो अपने साथ रोज़ मंदिर लेकर जाता था।

सभी गाँव के लोग हाथी को बहुत पसंद करते थे। हाथी भी मंदिर में आने वाले सभी श्रद्धालुओं का खूब स्वागत-सत्कार किया करता था।

हाथी और दर्ज़ी की कहानी हिंदी में | Hathi Aur Darji Ki Kahani
हाथी और दर्ज़ी की कहानी हिंदी में | Hathi Aur Darji Ki Kahani

सुबह पूजा-पाठ ख़त्म करने के बाद पुजारी अपने हाथी को नहलाने के लिए तालाब में लेकर जाता था। रोज़ हाथी तालाब में नहाने के बाद घर लौटते समय दर्ज़ी की दुकान पर रुकता था।

दर्ज़ी भी रोज हाथी को प्यार से एक केला खाने को देता। हाथी केला खाने के बाद अपनी सूँड से दर्ज़ी को नमस्ते करके पुजारी के साथ घर चला जाता था।

ये सब हाथी और पुजारी की रोज़मर्रा की ज़िन्दगी का एक हिस्सा था। एक दिन हाथी जब दर्ज़ी की दुकान पर केला खाने के लिए रुका, तो दर्ज़ी को शरारत करने का दिल हुआ। उसने हाथी को केला देने के बाद अपने हाथ में सुई रख ली।

जैसे ही हाथी ने उसे नमस्ते किया, दर्ज़ी ने उसकी सूँड पर सुई चुभा दी।

सुई चुभते ही हाथी ज़ोर से चिंघाड़ते हुए करहाने लगा। दर्ज़ी ने हाथी के दर्द का खूब मज़ाक़ उड़ाया और ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगा।

पुजारी को पता नहीं चला कि क्या हुआ। वो हाथी को सहलाते हुए अपने घर लेकर चला गया। अगले दिन फिर पुजारी और हाथी तालाब से लौटकर आ रहे थे। पुजारी कुछ दूर रुककर लोगों से बात करने लगा।

हाथी रोज़ की तरह दर्ज़ी की दुकान पर रुक गया। आज हाथी ने अपने सूँड में कीचड़ भर लिया था।

दर्ज़ी अपनी दुकान में बैठकर कपड़ों की सिलाई कर रहा था। जैसे ही हाथी ने दर्ज़ी को देखा, वैसे ही हाथी ने उसकी पूरी दुकान पर कीचड़ फेंक दिया।

उस कीचड़ में दर्ज़ी तो भीगा ही, बल्कि उसकी दुकान के सीले हुए कपड़े भी ख़राब हो गए।

इस सबसे दर्ज़ी समझ गया कि मैंने कल जो किया था, उसी का दण्ड हाथी ने मुझे आज दिया है। दर्ज़ी को अपनी ग़लती का एहसास हुआ और वो हाथी के पास भागकर गया। उसने हाथी से माफ़ी माँगने की कोशिश की।

उसने कहा, “हे गजराज, आपने बिल्कुल सही किया। मैंने जो कल किया था, उसका नतीजा यही होना चाहिए।”

हाथी ने दर्ज़ी की तरफ देखा और अपनी सूँड को हवा में लहराते हुए वहाँ से चला गया। दर्ज़ी को मन-ही-मन बहुत बुरा लग रहा था।

उसने अपने मज़ाक़-मस्ती के चक्कर में एक अच्छा दोस्त हाथी खो दिया था। उस दिन से दर्ज़ी ने ठान ली कि वो किसी को भी मज़ाक़ में भी नुक़सान नहीं पहुँचाएगा।

यह कहानी से हमने सीखा

दर्ज़ी और हाथी की कहानी से यह सीख मिलती है कि किसी के साथ भी बुरा व्यवहार नहीं करना चाहिए। मज़ाक़ में भी नहीं।

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