ऊँट और गीदड़ की कहानी हिंदी में | Camel And Jackal Story In Hindi

इस लेख के माध्यम से हम आपको हिंदी में “ऊँट और गीदड़ की कहानी हिंदी में | Camel And Jackal Story In Hindi” सुनाएंगे। यह कहानी ऊँट और गीदड़ के बारे में है, जो हमें विश्वास और बुद्धिमता की महत्वपूर्ण कहानी सुनाती है। इस कहानी के माध्यम से आप मनोरंजन के साथ-साथ सीख भी प्राप्त करेंगे।

ऊँट और गीदड़ की कहानी हिंदी में

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बहुत पुरानी बात है। एक जंगल में दो पक्के दोस्त रहते थे। एक था गीदड़ और दूसरा था ऊँट। गीदड़ काफ़ी चालाक था और ऊँट सीधा-सा।

ये दोनों दोस्त घंटों नदी के पास बैठकर अपना सुख-दुख बांटते थे। दिन गुज़रते गए और उनकी दोस्ती गहरी होती गई।

ऊँट और गीदड़ की कहानी हिंदी में | Camel And Jackal Story In Hindi
ऊँट और गीदड़ की कहानी हिंदी में | Camel And Jackal Story In Hindi
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एक दिन किसी ने गीदड़ को बताया कि पास के खेत में पके हुए तरबूज़ हैं। यह सुनते ही गीदड़ का मन ललचा गया, लेकिन वो खेत नदी पार था।

अब नदी को पार करके खेत तक पहुँचना उसके लिए मुश्किल था। इसलिए, वो नदी पार करने की तरकीब सोचने लगा।

सोचते-सोचते वो ऊँट के पास चला गया। ऊँट ने दिन के समय गीदड़ को देखकर पूछा, “मित्र, तुम यहाँ कैसे? हम तो शाम को नदी किनारे मिलने वाले थे।” तब गीदड़ ने बड़ी ही चालाकी से कहा, “देखो मित्र, पास के ही खेत में पके तरबूज़ हैं।

मैंने सुना है तरबूज़ बहुत मीठे हैं। तुम उन्हें खाकर खुश हो जाओगे। इसलिए, तुम्हें बताने चला आया।”

ऊँट को तरबूज़ काफ़ी पसंद था। वो बोला, “वाह! मैं अभी उस गाँव में जाता हूँ। मैंने बहुत समय से तरबूज़ नहीं खाए हैं।”

ऊँट जल्दी-जल्दी नदी पार करके खेत जाने की तैयारी करने लगा। तभी गीदड़ ने कहा, “दोस्त, तरबूज़ मुझे भी अच्छे लगते हैं, लेकिन मुझे तैरना नहीं आता है। तुम तरबूज़ खा लोगे, तो मुझे लगेगा कि मैंने भी खा लिए।”

तभी ऊँट बोला, “तुम चिंता मत करो, मैं तुम्हें अपनी पीठ पर बैठाकर नदी पार करवाऊँँगा। फिर साथ में मिलकर तरबूज़ खाएंगे।”

ऊँट ने जैसा कहा था वैसा ही किया। खेत में पहुँच कर गीदड़ ने मन भरकर तरबूज़ खाए और खुश हो गया।

खुशी के मारे वो ज़ोर-ज़ोर से आवाज़ें निकालने लगा। तभी ऊँट ने कहा, “तुम शोर मत मचाओ, लेकिन वो माना नहीं।”

गीदड़ की आवाज़ सुनकर किसान डंडे लेकर खेत के पास आ गए। गीदड़ चालाक था, इसलिए जल्दी से पेड़ों के पीछे छुप गया।

ऊँट का शरीर बड़ा था, इसलिए वो छुप नहीं पाया। किसानों ने गुस्से के मारे उसे बहुत मारा।

किसी तरह अपनी जान बचाते हुए ऊँट खेत के बाहर निकला। तभी पेड़ के पीछे छुपा गीदड़ बाहर आ गया। गीदड़ को देखकर ऊँट ने गुस्से में पूछा, “तुम क्यों इस तरह चिल्ला रहे थे?”

गीदड़ ने कहा कि मुझे खाने के बाद चिल्लाने की आदत है, तभी मेरा खाना पचता है।

इस जवाब को सुनकर ऊँट को और गुस्सा आ गया। फिर भी वो चुपचाप नदी की ओर बढ़ने लगा। नदी के पास पहुँचकर उसने अपनी पीठ पर गीदड़ को बैठा लिया।

इधर ऊँट को मार पड़ने से मन-ही-मन गीदड़ खुश हो रहा था। उधर नदी के बीच में पहुँचकर ऊँट ने नदी में डुबकी लगानी शुरू कर दी। गीदड़ डर गया और बोलने लगा, “यह क्या कर रहे हो?”

गुस्से में ऊँट ने कहा, “मुझे कुछ खाने के बाद उसे हज़म करने के लिए नदी में डुबकी मारनी पड़ती है।”

गीदड़ को समझ आ गया कि ऊँट उसके किए का बदला ले रहा है। बहुत मुश्किल से गीदड़ पानी से अपनी जान बचाकर नदी किनारे पहुँचा।

उस दिन के बाद से गीदड़ ने कभी भी ऊँट को परेशान करने की हिम्मत नहीं की।

यह कहानी से हमने सीखा

ऊँट और गीदड़ की कहानी से यह सीख मिलती है कि चालाकी नहीं करनी चाहिए। अपनी करनी खुद पर भारी पड़ जाती है। जो जैसा करता है उसे वैसा ही भरना होता है।

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