Mother Teresa Essay in Hindi – मदर टेरेसा पर निबंध

मदर टेरेसा पर निबंध – Mother Teresa Essay in Hindi, मदर टेरेसा पर निबंध: दुनिया के इतिहास में कई मानवतावादी हैं। अचानक से मदर टेरेसा लोगों की उस भीड़ में खड़ी हो गईं।

मदर टेरेसा का जीवन परिचय – Life introduction of Mother Teresa

‘मदर टेरेसा’ का जन्म 27 अगस्त 1910 ई. में अल्बानिया के स्कोप्य नगर में हुआ था। मदर टेरेसा का बचपन का नाम एगनेस गोजा बोजारिया था, लेकिन 1928 ई.में ‘लोरेटो आर्डर’ में जब इनकी शिक्षा शुरू हुई, तो वहाँ इनका नाम बदलकर ‘सिस्टर टेरेसा’ कर दिया गया।

बचपन से ही ये उदार, कोमल, दयालु और शान्त स्वभाव की थी। अध्ययन-काल में ही इनकी अध्यापिका ने भविष्यवाणी कर दी थी कि यह आगे चलकर संत, बनेगी और यह बात अक्षरसः सत्य साबित हुई।

मदर टेरेसा 1928 ई. में एक अध्यापिका के रूप में भारत आई और कोलकाता के सेंट मेरी हाई स्कूल में बच्चो को इतिहास एवं भूगोल का ज्ञान देने लगी।

Mother Teresa Essay in Hindi – मदर टेरेसा पर निबंध
Mother Teresa Essay in Hindi – मदर टेरेसा पर निबंध

जैसे ही उन्होंने भारत की धरती पर कदम रखा, सेवा करने के लिए उनके हृदय में जो दीप प्रज्ज्वलित हुआ, उस प्रकाश में उन्होंने निःस्वार्थ भाव से बीमार-गरीबों का सहारा बनकर उनके हृदय में विशेष स्थान बना लिया और इसी से उनकी सेवाएं शुरू हो गईं। वो जमाना, जिसने उन्हें दुनिया के करोड़ों करोड़ों की मां कहलाने का सौभाग्य दिया।

उन्हें गरीबों, अनाथों और शोषितों से इतना प्यार था कि उनकी निस्वार्थ सेवा को ‘मां’ ने भगवान की सेवा के रूप में बुलाया और स्वीकार किया। इसीलिए ‘माँ’ ने 1937 ई. में ‘नन’ के रूप में रहने का निश्चय किया, जिस पर वे जीवन भर अडिग रहीं।

10 सितंबर 1946 को जब वे दार्जिलिंग जा रही थीं, तो उन्हें एक दिव्य प्रेरणा मिली। 1947 में, माँ ने पढ़ाना छोड़ दिया और कोलकाता की झुग्गी में पहला स्कूल स्थापित किया।

उन्होंने आगे ‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ की स्थापना की। मदर टेरेसा 1946 से जीवन के सामने शुद्ध और शुद्ध संकल्प रखते हुए पूरे मन से समाज सेवा के नेक कार्य में लगी हुई हैं।

1952 ई. में उन्होंने कोलकाता में ‘निर्मल हृदय गृह’ की स्थापना की। 1957 में, उन्होंने ‘कुष्ठ रोगालय’ की स्थापना की और आगे उन्होंने आसनसोल में एक “शांति गृह” की स्थापना की।

कोलकाता में लगभग 60 केंद्र और दुनिया के विभिन्न हिस्सों में 70 केंद्र खोले गए। इन केंद्रों में ‘मां’ के साथ सेवा का व्रत लेने वाले लगभग 700 संन्यासी कार्यरत थे।

मदर टेरेसा ने सेवा करते हुए कभी भी रंगभेद, जाति, जाति, धर्म और देश की परवाह नहीं की। वह केवल पीड़ितों को दिलासा देने, उनकी पीड़ा में उनकी मदद करने और उनकी सेवा करने की परवाह करता था।

मदर टेरेसा को दिए गए पुरस्कार की जानकारी –

उनके इन दिव्य कार्यों की चर्चा देश-विदेश में फैलती रही। इसके बाद उन पर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों की झड़ी लग गई।

उन्हें पहले ‘पोप जॉन 23वां’ पुरस्कार मिला, आगे उन्हें ‘टेम्पलटन फाउंडेशन पुरस्कार’, ‘देशीकोटम पुरस्कार’, ‘पद्म श्री’, कैथोलिक विश्वविद्यालय से ‘डॉक्टरेट डिग्री’ और अंत में ‘नोबेल पुरस्कार’ मिला।

9 सितंबर 1979 को उन्हें ‘नोबेल पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया। उन्हें भारत की सर्वोच्च उपाधि ‘भारत रत्न’ से भी नवाजा गया था। 5 सितंबर 1997 ई. की रात को उनका निधन हो गया।

पूरी दुनिया को मानवता का अमृत देने वाली प्रेम, करुणा और दया की देवी मदर टेरेसा इस तरह चली गईं, लेकिन इस अनोखी मां को दुनिया हमेशा याद रखेगी।

Final Thoughts –

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