Moral Stories in Hindi – कहानियों और बचपन का एक अलग रिश्ता है। कहानियाँ जीवन के छोटे से छोटे पाठ को बहुत ही सरल और सहज तरीके से सिखाती हैं और इसी पाठ से बच्चों के व्यक्तित्व का निर्माण होता है। भले ही बच्चों का मनोरंजन करने वाली बच्चों की नैतिक कहानियां हमारे दिमाग से फीकी पड़ गई हों, लेकिन उनसे सीखी हुई सीख हम सभी के दिलों में जिंदा रहेगी। इसके विपरीत आज के दौर में बच्चों का मनोरंजन किया जा सकता है। जब मैं बच्चों को टीवी का रिमोट या मोबाइल देता हूं तो भूल जाता हूं कि उन्हें नैतिकता सिखाने से ज्यादा जरूरी उनका मनोरंजन करना है। नैतिक कथाओं ने हमें अपने बड़ों से नैतिकता का पाठ पढ़ाया। यदि यह प्रश्न उठता है कि क्या उन नैतिक कथाओं का अब भी कोई अर्थ है, तो उत्तर हाँ है। कहानियों के इस भाग में, हमने आपके बच्चों के लिए ऐसी ही कुछ नैतिक कहानियाँ एकत्रित की हैं। जीवन में नैतिक मूल्यों का होना इन कहानियों का एक ऐसा जादू है, जो बच्चों को जीवन भर इसे भूलने नहीं देगा….
Table Of Contents
- 1 Best 10+ Moral Stories in Hindi
- 1.1 लोमड़ी और खरगोश – The Fox and The Rabbit
- 1.2 अखरोट का पेड़ – The Walnut Tree
- 1.3 सत्संग और अहंकार – Good Company and Arrogance
- 1.4 बुद्धिमान शेर – The Wise Lion
- 1.5 बुरी आदतों से छुटकारा – Getting Rid of Bad Habits
- 1.6 नेकी कर और दरिया में डाल – Do Good and Cast It into the River
- 1.7 कौआ और लोमड़ी – The Crow and The Fox
- 1.8 गधा और शेर – The Donkey and The Lion
- 1.9 चलती का नाम गाड़ी – The Moving Vehicle
- 1.10 आलसी बंदर – The Lazy Monkey
- 2 नैतिक कहानी से हम क्या सीखते हैं?
Best 10+ Moral Stories in Hindi
बच्चों हम ने निचे Best 10+ Moral Stories in Hindi – दिया हैं, नीचे स्क्रॉल करते जाओ और हिंदी में नैतिक कहानियां पड़ते जाओ
लोमड़ी और खरगोश – The Fox and The Rabbit
बहुत समय पहले की बात है एक जंगल में एक खरगोश एक लोमड़ी को घुर रहा था लोमड़ी ने खरगोश से कहा की मुझे क्यों घुर रहे हो क्या तुम्हे अपने जीवन से प्यार नहीं है ।
इस पर खरगोश ने लोमड़ी से कहा की में देख रहा हु की क्या वास्तव में लोमड़ी चालाक होती है और चालाकी का मतलब क्या होता है । तो लोमड़ी ने खरगोश से कहा की तुम वाकई हिम्मत वाले हो इसलिए में तुम्हे नहीं मारूंगी ।
लोमड़ी ने खरगोश से कहा की आज से हम दोनों दोस्त है आज शाम को क्यों ना हम साथ मिलकर मेरे घर पर भोजन करे और उसी वक़्त इस विषय पर भी चर्चा करेंगे । इस पर खरगोश तेयार हो गया ।
शाम को खरगोश लोमड़ी के घर गया तो उसने देखा की खाने की टेबल पर कटोरी और प्लेट खाली पड़े है और भोजन कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा है ।
यह देख कर खरगोश के दिमाग में आया की लोमड़ी ने अपनी चालाकी दिखाने की लिए ही उसे अपने घर खाने के लिए बुलाया है और लोमड़ी मुझे ही आज के भोजन के रूप में खाना चाहती है ।
लोमड़ी बाहर आती उससे पहले ही खरगोश ने मोका देखकर भागने की सोची और जल्दी से लोमड़ी के घर से भाग गया । खरगोश अब चालाकी का मतलब समझ चूका था ।
Moral Stories in Hindi for Class 1 | नैतिक कहानियाँ कक्षा 1 हिंदी में
अखरोट का पेड़ – The Walnut Tree
एक गांव में एक बूढ़े आदमी रहता था। उसके पास एक अखरोट का पेड़ था। वह पेड़ बहुत बड़ा था और अखरोट के फलों से भरा हुआ था।
एक दिन, एक युवक आदमी ने उस बूढ़े आदमी से पूछा, “बूढ़े आदमी, आपके अखरोट का पेड़ इतना बड़ा है, क्या आप इसे बेचना चाहते हैं?”
बूढ़ा आदमी ने उत्तर दिया, “नहीं, मैं इसे बेचना नहीं चाहता। यह मेरी प्रतिस्पर्धा है। मैं इसे अपने बच्चों के लिए छोड़ना चाहता हूं।”
युवक ने अजीबोग़रीब देखा और बूढ़े आदमी से पूछा, “लेकिन बूढ़े आदमी, आप तो अब अपने बच्चों के साथ नहीं रहते हैं। फिर यह अखरोट का पेड़ आपके लिए क्या महत्व है?”
बूढ़ा आदमी ने उत्तर दिया, “यह सच है कि मैं अब अपने बच्चों के साथ नहीं रहता हूं। लेकिन मैंने यह पेड़ मेरे बच्चों के लिए उगाया था, इसलिए मैं इसे उनके लिए छोड़ना चाहता हूं। मेरे बच्चे अब भी इस गांव में जाकर इस पेड़ से अखरोट तोड़ते हैं। वे उन्हें बेचते हैं और इस तरह अखरोट के फलों का उपयोग करते हैं।
बूढ़ा आदमी ने अपने बच्चों को यह सीखाया कि कभी भी अपने सपनों और उद्देश्यों के लिए संघर्ष करने से डरना नहीं चाहिए। उन्हें समझाया कि जब हम किसी चीज के लिए संघर्ष करते हैं, तो हमें उससे अधिक अच्छी चीज मिलती है।
यह कहानी हमें यह बताती है कि हमें अपने सपनों और उद्देश्यों के लिए संघर्ष करना चाहिए और उन्हें पूरा करने के लिए समर्पित रहना चाहिए। अपनी मेहनत और उत्साह के साथ, हम जीवन में सफलता के लिए आगे बढ़ सकते हैं।
Raste Mein Badha Ki Kahani – Short Moral Story for Adults in Hindi
सत्संग और अहंकार – Good Company and Arrogance
एक समय की बात है, एक युवक अहंकारी था और उसे अपने आप में बहुत ज्ञान होने का अहसास था। वह सोचता था कि उसे किसी भी शिक्षक या महात्मा की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि उसे यह सब पहले से ही पता है।
एक दिन, वह एक सत्संग में जाने के लिए नहीं चला गया क्योंकि उसे लगा कि उसे और कुछ नहीं सीखना है। इस दौरान, उसे अपनी राय का अभिवादन किया गया और उससे यह कहा गया कि वह सत्संग में जाकर एक बार जरूर सुने। यह सुनने के लिए आपकी ज्ञान की जांच करेगा।
युवक ने इस सलाह को अनदेखा कर दिया और अपने अहंकार में न जाने क्या करते हुए घर वापस चला गया।
कुछ दिनों बाद, एक दिन उसे अपने दोस्तों के साथ एक बार फिर से सत्संग में जाने का मौका मिला। उस दिन, जब वह सत्संग में था, उसे बहुत अच्छा लगा क्योंकि वह लोग उसे अपनी असमर्थता के बारे में बताने लगे थे। यह सब सुनते हुए, उसका अहंकार धीमा होने लगा।
एक लम्बी सैर की तलाश में जाने का मौका मिला और उसने एक आदर्श व्यक्ति से मिलने का निर्णय लिया। यह आदर्श व्यक्ति उसके अध्यापक थे और उन्होंने उसके जीवन में बहुत से बदलाव किए थे।
युवक ने उसे देखा और उसके पास जाकर उनसे बात करने का निर्णय लिया। वह उनसे मिलने के लिए कुछ क्षणों के लिए बदल गया था। उसने उनसे सीखा कि अगर हम आदर्श व्यक्तियों से जुड़ते हैं तो हम उनसे कुछ न कुछ सीख सकते हैं।
उसका अहंकार खत्म हो गया था और वह अपने अध्यापक के साथ सफलता की ओर बढ़ता हुआ चला गया।
इस कहानी से हम यह सीखते हैं कि अहंकार एक बड़ी समस्या होती है जो हमें बाध्य करती है। हमें हमेशा समझ में आना चाहिए कि हम जितना भी ज्ञान हासिल कर लें, हमें हमेशा कुछ न कुछ सीखने की जरूरत होती है। सत्संग एक ऐसा माध्यम है जो हमें सही राह दिखाने में मदद कर सकता है और हमारी गलतियों को सुधारने में मदद कर सकता है।
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बुद्धिमान शेर – The Wise Lion
एक जंगल में एक शेर रहता था जो बुद्धिमान था। वह हमेशा सोचता था कि अगर वह एक गाय का शिकार करता है, तो उसे दूसरे जानवरों का साथ भी खाना पड़ता है। उसने सोचा कि उसे एक चालाक योजना बनानी चाहिए।
एक दिन, उसने एक निशाने पर एक मुर्गी को देखा। उसने सोचा कि यदि वह मुर्गी को उठा लेता है तो सभी बकरी और गाय भी आगे निकलेंगे। उसने मुर्गी को पकड़ा और अपने गुफा में ले गया।
जब सभी जानवर शेर को मुर्गी के साथ देखने आए, तो शेर ने बोला, “मैंने यह मुर्गी मरे शेरों के लिए बचा लिया है। अब हम सभी उसका भोजन कर सकते हैं।”
सभी जानवरों ने शेर के बात से खुश होकर मुर्गी का भोजन किया। शेर को समझ में नहीं आया कि वह कितना चालाक था। उसने दूसरों को अपने अधीन कर लिया था, और सभी जानवर उसकी बात से खुश थे।
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमेशा चालाकी का इस्तेमाल करने से पहले हमें उसकी समझ करनी चाहिए। हमेशा सच्चाई और ईमानदारी के मार्ग पर चलना चाहिए। जब हम चालाकी का इस्तेमाल करते हैं, तो हम अक्सर दूसरों को ठगते हैं और इससे हमारे संबंध बिगड़ सकते हैं। चालाकी से ज्यादा ईमानदारी और सच्चाई के लिए लोग हमेशा समझदारी से चुनाव करते हैं। इसलिए हमेशा सच्चाई और ईमानदारी का पालन करना चाहिए।
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बुरी आदतों से छुटकारा – Getting Rid of Bad Habits
एक पिता ने संत से कहा मेरे बेटा बुरी आदतों में फंस गया है, संत ने लड़के को समझाया कि छोटे पौधे को उखाड़ सकते हैं, लेकिन पेड़ उखाड़ना संभव नहीं है
बुरी आदतों की वजह से जीवन में परेशानियां बढ़ने लगती हैं। गलत आदतों को जल्दी से जल्दी छोड़ देना चाहिए, वरना समस्याएं और ज्यादा गंभीर हो जाती हैं। इस बात को एक लोक कथा से समझ सकते हैं। जानिए ये कथा…
पुराने समय में एक व्यक्ति अपने गांव के विद्वान संत के पास गया और बोला कि गुरुजी मेरा बेटा बुरी आदतों में फंस गया है। उसकी अभी ज्यादा उम्र भी नहीं है, मैं सोच रहा था कि ये बड़ा हो जाएगा तो सुधर जाएगा, लेकिन कोई लाभ नहीं मिला है।
संत से जो भी व्यक्ति मिलने आता था, वे उसकी समस्याओं का निराकरण करते थे। संत ने उस दुखी पिता से कहा कि तुम कल अपने बेटे को मेरे पास भेज देना। पिता ने अगले दि अपने बेटे को संत के पास भेजा।
लड़का संत के पास पहुंचा और प्रणाम किया। संत उसे लेकर अपने बाग में पहुंचे और टहलने लगे। कुछ देर बाद संत ने लड़के से कहा कि सामने वह छोटा सा पौधा दिख रहा है, उसे उखाड़ सकते हो?
लड़के ने कहा कि मैं इसे अभी उखाड़ देता हूं और बच्चे ने पौधा उखाड़ दिया। थोड़ी देर बाद संत ने बच्चे को थोड़ा बड़ा पौधा दिखाया और उसे उखाड़ने के लिए बोला। लड़के को थोड़ी ज्यादा ताकत लगानी पड़ी, लेकिन उसने पौधा उखाड़ दिया।
थोड़ी देर बाद संत ने बच्चे को एक पेड़ दिखाया और कहा कि इसे उखाड़ दो। बच्चे ने पेड़ के तना पकड़ा, लेकिन वह उसे हिला भी नहीं सका। लड़के ने संत से कहा कि इस पेड़ को उखाड़ना तो संभव नहीं है।
संत ने उस लड़के को समझाया कि छोटे पौधे को उखाड़ना बहुत आसान था, थोड़े बड़े को पौधे को उखाड़ने में थोड़ी ताकत लगानी पड़ी थी, लेकिन पेड़ को उखाड़ना संभव नहीं है। ठीक इसी तरह बुरी आदतों को जितनी जल्दी छोड़ देंगे, उतना अच्छा रहेगा। जब बुरी आदतें नई होती हैं तो उन्हें छोड़ना आसान होता है, लेकिन आदतें जैसे-जैसे पुरानी होती जाएंगी, उन्हें छोड़ पाना मुश्किल हो जाता है।
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नेकी कर और दरिया में डाल – Do Good and Cast It into the River
बहुत समय पहले की बात है, भारत के उत्तर-पश्चिम भाग के एक सुदूर गाँव में शरीफ नाम का 17 साल का लड़का अपने माँ-बाप के साथ रहता था। माँ-बाप बांस के घरेलू उपकरण बनाकर बेचते थे।
लड़का एक धनी किसान की भेड़-बकरियाँ चराता था। वह उन्हें नई नई घास वाली जगह ले जाकर चरने के लिये छोड़ देता। स्वयं एक स्थान पर बैठकर बांसुरी बजाता या दिवास्वप्न में डूब जाता था।
उसके दो सपने थे। एक था मां-बाप के लिये एक महल बनवाना। दूसरा उस राज्य की राजकुमारी से विवाह करना। वह यह भी समझता था, ये दोनों ही बातें असंभव सी थी। फ़िर भी वह अपने मन को नहीं समझा पाता था।
एक दिन उसके एक साथी ने कहा, “मैंने सुना है मंदिर के पास एक फकीर बैठता है। वह बहुत पहुंचा हुआ है। उसने ग्राम वासियों की बड़ी मदद की है। सेठ साहूकार भी उससे सलाह लेने जाते हैं।”
शरीफ अपने दोस्त की बात सुनकर उस फकीर से मिला और पूछा, “मैं ऐसा क्या करूँ कि मेरी दो खास तमन्नाएं पूरी हो जायें।”
फकीर ने पूछा, “वे खास तमन्नाएं क्या है।”
शरीफ ने बताया, “एक तो मां-बाप के लिये एक महल बनवाना। दूसरा इस राज्य की राजकुमारी से विवाह करना।”
फकीर ने कहा, “नेकी कर दरिया में डाल।”
शरीफ ने पूछा, “क्या मतलब?”
फकीर का मतलब तो था ‘नेकी करो और भूल जाओ।’ किन्तु यह देखकर कि शरीफ को माँ-बाप के सुख और आराम की चिंता है, फकीर विशेष प्रसन्न हो गया था।
उसने शरीफ का काम आसान करने हेतु उससे कहा, “अधिक से अधिक नेक काम करो और जब भी कोई नेक काम करो एक बताशा गाँव के नजदीक से बहने वाले दरिया में बरगद के पेड़ के पास वाले किनारे पर डाल आया करो।”
शरीफ अब नेकी का कोई अवसर न गॅंवाता। अपनी सीमित आय में से भी गरीबों को दान देना, कमजोर की सहायता, बीमारों की सेवा उसका व्यसन बन गया। हर नेकी के बदले वह एक बताशा दरिया में फकीर के बताये स्थान पर डाल आता था। अगर वह रोज नहीं जा पाता था तो बहुत से बताशे एक साथ दरिया में डाल देता था।
शरीफ की नेकियों के चर्चे गाँव, शहर होते हुए राजधानी और राजदरबार तक पहुँच गये।
इधर फकीर के अलावा किसी को ज्ञात नहीं था कि दरिया के किनारे उस बरगद के पेड़ पर एक जिन्न रहता था जिसके करीब शरीफ दरिया में बताशे डालता था।
उस जिन्न को बताशे बहुत पसंद थे। जब शरीफ दरिया में बताशे डालता तो उन्हें डूबने या घुलने से पहले ही वह अपना एक हाथ लंबा करके बताशे उठा लेता और मुँह में डालकर मजे से चूसता।
इस प्रकार बहुत दिनों तक लगातार बताशे खाकर वह शरीफ से अति प्रसन्न हो गया।
उसके मन में शरीफ को पुरस्कृत करने का विचार आया और एक दिन वह शरीफ के सम्मुख प्रगट हो गया।
उसने शरीफ से कहा, “मैं जिन्न हूँ और तुम्हारे नेक कार्यों से खुश हूँ। मैं तुम्हारी कोई एक इच्छा पूरी कर पुरस्कृत करना चाहता हूँ।”
शरीफ ने बेहिचक जवाब दिया, “मैं अपने माता-पिता के लिए एक महल बनाना चाहता हूँ।”
जिन्न ने कहा, “ठीक है बन जायगा।”और वह गायब हो गया।
शरीफ अपने घर वापस चल दिया। घर पहुँच कर उसके आश्चर्य और खुशी का ठिकाना न रहा। उसका घर एक सर्वसुविधा सम्पन्न महल में तब्दील हो चुका था। उसके माँ-बाप चमत्कृत और खुश थे। शरीफ ने उन्हें जिन्न के बारे में बताकर उनकी जिज्ञासा को शांत किया।
उधर शरीफ के द्वारा किए जाने वाले नेक कामों के कारण फैली उसकी ख्याति राजा और राजकुमारी तक पहुंची। राजा ने भी राज्य के अन्य लोगों को अच्छे कार्यों को करने के लिए प्रेरित करने के उद्देश्य से शरीफ को राजधानी में बुलाकर सम्मानित और पुरस्कृत करने का निर्णय किया। उसने अपना दूत भेज कर शरीफ को बुलवा भेजा।
जब शरीफ राजधानी में राजदरबार में पहुंचा तो उसकी बातों, व्यवहार और व्यक्तित्व से राजा और राजकुमारी दोनों प्रभावित हुए। राजकुमारी दमयंती विवाह योग्य थी। राजा को उसके लिए एक सुयोग्य वर की तलाश थी। उन्होंने राजकुमारी से पूछ कर शरीफ के समक्ष राजकुमारी से विवाह का प्रस्ताव रख दिया जिसे शरीफ ने सहर्ष स्वीकार कर लिया।
राजा ने एक जन समारोह में शरीफ को उसके नेक कार्यों के लिए सम्मान और पुरस्कार दिया। साथ ही राजकुमारी और शरीफ के विवाह की भी घोषणा कर दी।
राजा ने एक रथ भेजकर शरीफ के माता-पिता को राजमहल में बुला लिया और एक सप्ताह बाद शुभ मुहूर्त में दमयंती और शरीफ का विवाह सम्पन्न किया। सभी प्रसन्न थे। शरीफ की प्रसन्नता का पारावार न था। उसके दोनों सपने सच हुए थे। किन्तु वह समझ गया था ये उसके द्वारा किए गये नेक कार्यों का परिणाम था। अतः उसने नेक कार्य करते रहने का निश्चय किया और सुखपूर्वक राजकुमारी दमयंती और अपने माता-पिता के साथ महल में रहने लगा।
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कौआ और लोमड़ी – The Crow and The Fox
एक जंगल में एक लोमड़ी रहती थी. वो बहुत ही भूखी थी. वह अपनी भूख मिटने के लिए भोजन की खोज में इधर– उधर घूमने लगी. उसने सारा जंगल छान मारा, जब उसे सारे जंगल में भटकने के बाद भी कुछ न मिला, तो वह गर्मी और भूख से परेशान होकर एक पेड़ के नीचे बैठ गई. अचानक उसकी नजर ऊपर गई. पेड़ पर एक कौआ बैठा हुआ था. उसके मुंह में रोटी का एक टुकड़ा था.
कौवे के मुंह में रोटी देखकर उस भूखी लोमड़ी के मुंह में पानी भर आया. वह कौवे से रोटी छीनने का उपाय सोचने लगी. उसे अचानक एक उपाय सूझा और तभी उसने कौवे को कहा, ”कौआ भैया! तुम बहुत ही सुन्दर हो. मैंने तुम्हारी बहुत प्रशंसा सुनी है, सुना है तुम गीत बहुत अच्छे गाते हो. तुम्हारी सुरीली मधुर आवाज़ के सभी दीवाने हैं. क्या मुझे गीत नहीं सुनाओगे ?
कौआ अपनी प्रशंसा को सुनकर बहुत खुश हुआ. वह लोमड़ी की मीठी मीठी बातों में आ गया और बिना सोचे-समझे उसने गाना गाने के लिए मुंह खोल दिया. उसने जैसे ही अपना मुंह खोला, रोटी का टुकड़ा नीचे गिर गया. भूखी लोमड़ी ने झट से वह टुकड़ा उठाया और वहां से भाग गई.
यह देख कौआ अपनी मूर्खता पर पछताने लगा. लेकिन अब पछताने से क्या होना था, चतुर लोमड़ी ने मूर्ख कौवे की मूर्खता का लाभ उठाया और अपना फायदा किया.
यह कहानी सन्देश देती है कि अपनी झूठी प्रशंसा से हमें बचना चाहिए. कई बार हमें कई ऐसे लोग मिलते हैं, जो अपना काम निकालने के लिए हमारी झूठी तारीफ़ करते हैं और अपना काम निकालते हैं. काम निकल जाने के बाद फिर हमें पूछते भी नहीं.
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गधा और शेर – The Donkey and The Lion
एक जंगल में करालकेसर नाम का एक शेर रहता था। उसके साथ हमेशा उसका सेवक धूसरक नाम का सियार भी रहा करता था। एक बार शेर की लड़ाई एक हाथी से हो गयी जिसमे वह इतना जख्मी हो गया कि उससे चला भी नहीं जा रहा था। शेर और सियार का भूख के मारे बुरा हाल था।
शेर ने अपनी जान की परवाह करते हुए सियार से कहा -“सुन सेवक तू किसी ऐसे जिव को मेरे पास लेकर आ जिसे मैं आसनी से मार सकूँ और मुझे ज्यादा मेहनत न करनी पड़े। ” शेर का आदेश सुनकर सियार किसी ऐसे जानवर को ढूंढने के लिए जंगल से होता हुआ एक गांव में पहुंचा। गांव में पहुंचकर उसे एक गधा दिखाई दिया। जो बहुत उदास सा नजर आ रहा था। सियार ने उससे जाकर पूछा – “अरे भाई तुम बड़े दिन बाद दिखाई दिए हो ।”
इसपर गधा कहता है -“अरे भाई एक धोबी मेरे ऊपर बोझा ढोता है और खाने के लिए कुछ भी नहीं देता।” इसपर सियार कहता है-“भाई तुम चिंता मत करो मैं तुम्हारी बिरादरी की तीन दूसरी कन्याएँ को जंगल में हरी-हरी पन्ना जैसी घास के मैदान में ले गया। जहाँ वह बोझा ढोने से बच गई और आज अपना जीवन आराम से जी रहीं है। उनमे से एक विवाह योग्य हो गई है मैं उसका विवाह तुम्हारे साथ करवा दूंगा जिससे तुम बिना बोझा ढोये अपना जीवन आराम से व्यतीत कर सकते हो।”
यह सुनकर गधा सियार के साथ जाने को तैयार हो गया। दोनों जंगल में बातें करते हुए चलते हैं तभी वह शेर के पास पहुँच जाते है। जख्मी शेर गधे को देख उसपर झपटा मारने की कोशिश करता है पर भाग्यवश गधा बच निकलता है और गधे को भागते वक्त शेर का पंजा लग जाता है।
सियार शेर को कहता है -“तुम कैसे शेर हो जो खुद चलकर आए हुए जानकर को भी अपना शिकार नहीं बना पाए।” यह सुनकर शेर शर्मीली से मुस्कान के साथ कहता है -“अरे मैं तैयार नहीं था इसलिए वह बचकर चला गया।” सियार कहता है- “अच्छा ठीक है मैं एक बार ओर प्रयास करके उसे तुम्हारे पास लाता हूँ।” शेर ने कहा -” वह तुम्हारे साथ नहीं आएगा क्योंकि वह डर गया है।”
इसपर सियार कहता है -“तुम उसकी चिंता मत करो।” यह कहकर सियार फिर से गधे के पास चला जाता है और उसे गधा वहीँ पर घास चरता हुआ दिखाई देता है। गधा सियार को देखकर कहता है -“अरे भाई तुम मुझे अच्छी जगह ले गए। अगर मैं वहां से नहीं भागता तो जीवन समाप्त हो जाता। पता नहीं वो कौन सा जीव था जिसका इतना भारी पंजा मेरी पीठ पर पड़ा। “
सियार जवाब देता है – “अरे भाई वह वही कन्या थी जो उत्साह से तुम्हे मिलने के लिए उठी और तुम्हे भागता देख अपने पंजे से रोकने के कोशिश की। वह कन्या बहुत दुखी है क्योंकि तुम वहां से भाग आये हो इसलिए तुम मेरे साथ चलो। अगर तुम मेरे साथ नहीं गए तो वह अपने प्राण त्याग देगी इसलिए तुम मेरे साथ चलो।”
सियार की बात सुनकर वह गधा उसके साथ दोबारा जंगल की और चल दिया और गधे को इस बार शेर ने नहीं छोड़ा वह मारा गया। शेर गधे को मार कर स्नान करने के लिए चला गया। पीछे से सियार ने गधे का दिल और कान खा डाला। शेर वापिस आकर देखता है कि गधे के शरीर में कान और दिल नहीं है। यह देख शेर कहता है- “दुष्ट तूने मेरे भोजन को जूठा कर दिया।”
इसपर सियार कहता है – “स्वामी नहीं मैंने आपका भोजन जूठा नहीं किया। बल्कि इसमें कान और दिल नहीं था तभी तो यह जाकर दोबारा वापिस आ गया।
यह सुनकर शेर को सियार बात पर यकीं हो गया और दोनों ने भोजन का आनद लिया।
यह जानते हुए भी कि काम का बुरा परिणाम होगा, कोई उसे करता है तो वह मनुष्य गधा ही होता है।
Sher Aur Chuha Ki kahani – Short Hindi Story with Moral
चलती का नाम गाड़ी – The Moving Vehicle
“चलती का नाम गाड़ी” एक रोमांचक कहानी है जो एक चलती हुई गाड़ी के बारे में है। यह कहानी एक छोटी सी गाड़ी की है, जो बहुत ही पुरानी थी। इस गाड़ी का नाम था “ब्लैक बिटी”। यह गाड़ी अपने आप में एक खासत होती थी।
एक दिन, ब्लैक बिटी को लाल बत्तियों वाली बड़ी सी गाड़ी ने पीछे से धक्का दिया था और उसका एक टायर फट गया था। ब्लैक बिटी उस बड़ी सी गाड़ी को अपनी दुर्बलता की वजह से दोष दे रही थी, लेकिन उस समय उसे एक बुद्धिमान व्यक्ति ने बताया कि दुर्बलता हमेशा नहीं होती है।
वह व्यक्ति बताता है कि उसकी बेटी को भी ब्लैक बिटी से ज्यादा उम्र नहीं होती होगी, लेकिन उसकी बेटी ब्लैक बिटी से बहुत ज्यादा मजबूत है। इसका मतलब यह है कि दुर्बलता और उम्र कोई महत्वपूर्ण फर्क नहीं पड़ता।
ब्लैक बिटी की इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें कभी भी दुर्बल नहीं मानना चाहिए। जीवन में कभी-कभी हम सफलता के रास्ते पर असफलता से गुजर जाते हैं, लेकिन असफलता से हार नहीं मानना चाहिए। हमें सफलता के लिए कोशिश करनी चाहिए और असफलता से सीख करनी चाहिए। ब्लैक बिटी ने इसे समझा और अपनी जिंदगी में नई उड़ान भरना शुरू कर दिया।
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आलसी बंदर – The Lazy Monkey
एक जंगल में एक आलसी बंदर रहता था। उसे कुछ भी करने की चाह नहीं थी। वह दिन भर सोता रहता था और सभी जंगली जानवर उसे देखकर हँसते थे।
एक दिन जंगल में एक समूह बंदरों ने उसके पास से गुजरते हुए देखा कि वह सो रहा है। एक बंदर ने उसे कहा, “अरे आलसी बंदर, क्या तुम इतने आलसी हो कि तुम्हें उठकर खाना खाने के लिए भी कुछ नहीं करना पड़ता है?”
आलसी बंदर ने उत्तर दिया, “नहीं, मुझे कोई काम नहीं करना होता। मैं जंगल में सबसे आलसी बंदर हूँ।”
दूसरे बंदर ने कहा, “हम तुम्हें दिखाते हैं कि कैसे तुम्हें कुछ करना होगा। हम एक बड़ा पेड़ उखाड़ने जा रहे हैं और हमें तुम्हारी मदद चाहिए।”
आलसी बंदर ने कहा, “मैं नहीं जाऊँगा। मैं थक गया हूँ।”
बाकी बंदरों ने पेड़ को उखाड़ दिया और अपने घरों की ओर ले जाने लगे। आलसी बंदर जग गया था। वह चाहता था कि वह भी उन्हें मदद करता।
उसने अपने आप से कहा, “मैं अपनी आलसी आदत से छुटकारा पाना चाहता हूँ। मैंने अपने आप को जाना है कि आलसी होने से कुछ भी हासिल नहीं होता है। अब से मैं अपने काम को स्वस्थ मन और शरीर से करूँगा और आलसी नहीं रहूंगा।”
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नैतिक कहानी से हम क्या सीखते हैं?
नैतिक कहानियों से हम कई महत्वपूर्ण सीखें प्राप्त कर सकते हैं। कुछ महत्वपूर्ण सीखों में शामिल हैं:
- नेकी कर दरिया में डाल: हमें यह सीख मिलती है कि हमें दुसरों की मदद करनी चाहिए और हमेशा नेक काम करना चाहिए बिना किसी उम्मीद के।
- सत्संग और अहंकार: यह सीख हमें बताती है कि हमें गलती करने पर अपने गुरु और सही सलाह की तलाश करनी चाहिए इसके बजाय अपने अहंकार का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
- बुरी आदतों से छुटकारा: हमें यह सीख मिलती है कि बुरी आदतों से छुटकारा पाना बहुत मुश्किल होता है, लेकिन यदि हम अपनी इच्छाशक्ति का उपयोग करते हुए समय और संयम से काम करते हैं तो हम अपनी बुरी आदतों से छुटकारा पा सकते हैं।
- दूसरों को समझना: यह सीख हमें बताती है कि हमें दूसरों की बातों को समझने और उनकी समस्याओं को समझने की कोशिश करनी चाहिए।
- आलसीता: आप सही कह रहे हैं। यह कहानी हमें बताती है कि आलसीता अनेक समस्याओं का कारण बन सकती है। हमें हमेशा मेहनत करना चाहिए और आलसी नहीं होना चाहिए। हमें इस बात को समझना चाहिए कि जीवन में सफलता केवल मनचाही चीजों को प्राप्त करने से नहीं मिलती है। इसके लिए हमें मेहनत करनी पड़ती है, समय और संयति से काम करना पड़ता है। यह हमें सफलता की राह में मदद करेगा और हमें अपने लक्ष्यों तक पहुंचने में मदद करेगा।