Unseen Passage for Class 12 in Hindi अपठित गद्यांश

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Unseen Passage for Class 12
Unseen Passage for Class 12

Unseen Passage for Class 12 in Hindi

अपठित गद्यांश

अपठित साहित्यिक गद्यांश के अंतर्गत गद्य-खंड को पढ़कर उससे संबंधित उत्तर देने होते हैं। ये प्रश्नोत्तर गद्यावतरण के शीर्षक, विषय-वस्तु के बोध एवं भाषिक बिन्दुओं को केन्द्र में रखकर पूछे जाते हैं। इस हेतु विद्यार्थियों को निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए –

गद्य एवं पद्य को वह अंश जो कभी नहीं पढ़ा गया हो, अपठित’ कहलाता है। दूसरे शब्दों में ऐसा उदाहण जो पाठ्यक्रम में निर्धारित पुस्तकों से ने लेकर किसी अन्य पुस्तक से लिया गया हो, अपठित अंश माना जाता है।

  • *यदि गद्यांश में रेखांकित शब्दों के अर्थ अथवा उनकी व्याख्या पूछी जाये तो प्रसंग के अनुसार ही उनका अर्थ एवं व्याख्या करनी चाहिये। अपनी ओर से शब्दों तथा उदाहरणों का प्रयोग नहीं करना चाहिये।
  • गद्यांश का शीर्षक अत्यन्त छोटा, सार्थक एवं मूल-भाव पर केन्द्रित होना चाहिये।
  • गद्य-खण्ड में प्रयुक्त उद्धरण-चिह्न का प्रयोग अपने उत्तरों में नहीं करना चाहिये।
  • प्रश्नों के उत्तर लिखते समय सरल एवं मौलिक भाषा का ही प्रयोग करें, न कि गद्यांश को उतारें।
  • *जिन प्रश्नों के उत्तर नहीं मिल पाये हों, उन पर ध्यान केन्द्रित कर अवतरण को फिर से पूर्ण एकाग्रचित्त होकर पढ़ें, उत्तर अवश्य मिल जायेंगे क्योंकि सभी प्रश्नों के उत्तर गद्यांश के अन्तर्गत ही होते हैं।
  • *तत्पश्चात् नीचे दिये गये प्रश्नों को पढ़े एवं प्रश्नों को ध्यान में रखते हुए गद्यांश को पुनः एक बार पढ़ें । जिन प्रश्नों के उत्तर मिल जायें उन्हें रेखांकित करते जायें।
  • *गद्यांश को एकाग्रता से पढ़ने के बाद उसके मूल-भाव को समझना चाहिये।
  • *गद्यांश में प्रयुक्त कठिन शब्दों को अलग लिखकर उनका अर्थ समझने का प्रयास करें यदि अर्थ समझ में नहीं आ रहा हो तो वाक्य के आधार पर अर्थ एवं भाव निकाला जा सकता है।
  • *सर्वप्रथम गद्य-खण्ड को कम से कम तीन बार ध्यानपूर्वक पढ़ लेना चाहिये समझ न आने पर घबरायें या परेशान न हों, आत्म-विश्वास एवं धैर्य के साथ पुनः पढ़े।

01 निम्नलिखित अपठित गद्यांश को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों का उत्तर दें :

सभी मनुष्य स्वभाव से ही साहित्य-स्रष्टा नहीं होते, पर साहित्य-प्रेमी होते हैं। मनुष्य का स्वभाव ही है सुन्दर देखने का। घी का लड्डू टेढ़ा भी मीठा ही होता है, पर मनुष्य गोल बनाकर उसे सुन्दर कर लेता है। मूर्ख-से-मूर्ख हलवाई के यहाँ भी गोल लड्डू ही प्राप्त होता है; लेकिन सुन्दरता को सदा-सर्वदा तलाश करने की शक्ति साधना के द्वारा प्राप्त होती है। उच्छृंखलता और सौन्दर्य-बोध में अन्तर है। बिगड़े दिमाग का युवक परायी बहू-बेटियों के घूरने को भी सौन्दर्य-प्रेम कहा करता है, हालाँकि यह संसार की सर्वाधिक असुन्दर बात है। जैसा कि पहले ही बताया गया है, सुन्दरता सामंजस्य में होती है और सामंजस्य का अर्थ होता है, किसी चीज का बहुत अधिक और किसी का बहुत कम न होना। इसमें संयम की बड़ी ज़रूरत है। इसलिए सौंदर्य-प्रेम में संयम होता है, उच्छृंखलता नहीं। इस विषय में भी साहित्य ही हमारा मार्ग-दर्शक हो सकता है।

जो आदमी दूसरों के भावों का आदर करना नहीं जानता उसे दूसरे से भी सद्भावना की आशा नहीं करनी चाहिए। मनुष्य कुछ ऐसी जटिलताओं में आ फंसा है कि उसके भावों को ठीक-ठीक पहचानना सब समय सुकर नहीं होता। ऐसी अवस्था में हमें मनीषियों की चिन्ता का सहारा लेना पड़ता है। इस दिशा में साहित्य के अलावा दूसरा उपाय नहीं है। मनुष्य की सर्वोत्तम कृति साहित्य है और उसे मनुष्य पद का अधिकारी बने रहने के लिए साहित्य ही एकमात्र सहारा है। यहाँ साहित्य से हमारा मतलब उसकी सब तरह ही सात्विक चिन्ता-धारा से है।

उपरोक्त गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नो के उत्तर लिखिए-

उपरोक्त गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नो के उत्तर लिखिए-

(क) गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक दीजिए।

(ख) साहित्य स्रष्टा और साहित्य प्रेमी से क्या तात्पर्य है?

(ग) लड्डू का उदाहरण क्यों दिया गया है?

(घ) उच्छृंखलता और सौंदर्य-बोध में क्या अंतर है?

(ङ) लेखक ने संसार की सबसे बुरी बात किसे माना है और क्यों?

(च) जीवन में संयम की ज़रूरत क्यों है?

(छ) हमें विद्वानों के चिन्तन की आवश्यकता क्यों पड़ती है?

(ज) उपसर्ग और प्रत्यय अलग कीजिए – ‘उच्छृंखलता’

(झ) सरल वाक्य में बदलिए-

सभी मनुष्य स्वभाव से ही साहित्य-स्रष्टा नहीं होते, पर साहित्य प्रेमी होते हैं।


02 निम्नलिखित अपठित गद्यांश को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों का उत्तर दें :

कर्तव्य-पालन और सत्यता में बड़ा घनिष्ठ सम्बन्ध है। जो मनुष्य अपना कर्तव्य-पालन करता है, वह अपने कामों और वचनों में सत्यता का बर्ताव भी रखता है। वह ठीक समय पर उचित रीति से अच्छे कामों को करता है । सत्यता ही एक ऐसी वस्तु है, जिससे इस संसार में मनुष्य अपने कार्यों में सफलता पा सकता है, क्योंकि संसार में कोई कार्य झूठ बोलने से नहीं चल सकता। यदि किसी के घर सब लोग झूठ बोलने लगे तो उस घर में कोई कार्य न हो सकेगा और सब लोग बड़ा दु:ख भोगेंगे । इसलिए हम लोगों को अपने कार्यों में झूठ का बर्ताव नहीं करना चाहिए। अतएव सत्यता को सबसे ऊँचा स्थान देना उचित है। संसार में जितने पाप हैं, झूठ उन सबों से बुरा है । झूठे की उत्पत्ति पाप, कुटिलता और कायरता के कारण होती है। बहुत-से लोग सच्चाई का इतना थोड़ा ध्यान रखते हैं कि अपने सेवकों को स्वयं झूठ बोलना सिखाते हैं। पर उनको इस बात पर आश्चर्य करना और क्रुद्ध न होना चाहिए, जब उनके नौकर भी उनसे अपने लिए झूठ बोलें।

बहुत-से लोग नीति और आवश्यकता के बहाने झूठ की रक्षा करते हैं। वे कहते हैं कि इस समय इस बात को प्रकाशित न करना और दूसरी बात को बनाकर कहना, नीति के अनुसार समयानुकूल और परम आवश्यक है। फिर बहुत-से लोग किसी बात को ‘सत्य-सत्य’ कहते हैं कि जिससे सुनने वाला यह समझे कि यह बात सत्य नहीं, वरन् इसका जो उल्टा है वही सत्य होगा। इस प्रकार से बातों का कहना झूठ बोलने के पाप से किसी प्रकार कम नहीं है।

संसार में बहुत-से ऐसे भी नीच और कुत्सिते लोग होते हैं, जो झूठ बोलने में अपनी चतुराई समझते हैं और सत्य को छिपाकर धोखा देने या झूठ बोलकर अपने को बचा लेने में अपना परम गौरव मानते हैं । ऐसे लोग ही समाज को नष्ट करके दु:ख और सन्ताप के फैलाने के मुख्य कारण होते हैं । इस प्रकार झूठ बोलना स्पष्ट न बोलने से अधिक निन्दित और कुत्सित कर्म है।

उपरोक्त गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नो के उत्तर लिखिए-

(क) प्रस्तुत गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
उत्तर
. गद्यांश का उचित शीर्षक-‘जीवन में सत्य का महत्त्व’।

(ख) कर्तव्य-पालन करने वाले मनुष्य का मृत्यु के प्रति कैसा दृष्टिकोण होता है?
उत्तर
. कर्तव्य-पालन करने वाले मनुष्य अपने जीवन तथा कार्यों में सत्य का व्यवहार करते हैं। कोई भी कार्य सत्य के बिना ठीक तरह नहीं हो सकता। कर्तव्य पालन और सत्यता में गहरा सम्बन्ध है। वे सत्य पर चलकर ही अपना कर्तव्य सफलतापूर्वक निभाते हैं।

(ग) नीति और आवश्यकता के बहाने झूठ की रक्षा कैसे की जाती है?
उत्तर
. कुछ लोग झूठ बोलते हैं तो कहते हैं कि इस समय झूठ बोलना नीति के अनुसार है अथवा इस समय झूठ बोलने की आवश्यकता है। इस प्रकार के झूठ बोलने को सही ठहराते हैं।

(घ) ‘समयानुकूल’ शब्द में सन्धि-विच्छेद कीजिए और संधि का नाम लिखिए।
उत्तर
. शब्द-समयानुकूल। सन्धि-विच्छेद = समय+अनुकूल। सन्धि का नाम-दीर्घ (स्वर) सन्धि।


03 निम्नलिखित अपठित गद्यांश को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों का उत्तर दें :

अहिंसा और कायरता कभी साथ नहीं चलतीं । मैं पूरी तरह शस्त्र-सज्जित मनुष्य के हृदय से कायर होने की कल्पना कर सकता हूँ । हथियार रखना कायरता नहीं तो डर का होना तो प्रकट करता ही है, परन्तु सच्ची अहिंसा शुद्ध निर्भयता के बिना असम्भव है।

क्या मुझ में बहादुरों की वह अहिंसा है ? केवल मेरी मृत्यु ही इसे बताएगी । अगर कोई मेरी हत्या करे और मैं मुँह से हत्यारे के लिए प्रार्थना करते हुए तथा ईश्वर का नाम जपते हुए और हृदय-मन्दिर में उसकी जीती-जागती उपस्थिति का भान रखते हुए मरूं तो ही कहा जाएगा कि मुझ में बहादुरों की अहिंसा थी । मेरी सारी शक्तियों के क्षीण हो जाने से अपंग बनकर मैं एक हारे हुए आदमी के रूप में नहीं मरना चाहता। किसी हत्यारे की गोली भले मेरे जीवन का अन्त कर दे, मैं उसका स्वागत करूंगा । लेकिन सबसे ज्यादा तो मैं अन्तिम श्वास तक अपना कर्तव्य पालन करते हुए ही.मरना पसन्द करूंगा।

मुझे शहीद होने की तमन्ना नहीं है। लेकिन अगर धर्म की रक्षा का उच्चतम कर्तव्य-पालन करते हुए मुझे शहादत मिल जाए तो मैं उसका पात्र माना जाऊँगा । भूतकाल में मेरे प्राण लेने के लिए मुझ पर अनेक बार आक्रमण किए गए हैं; परन्तु आज तक भगवान ने मेरी रक्षा की है और प्राण लेने का प्रयत्न करने वाले अपने किए पर पछताए हैं। लेकिन अगर कोई आदमी यह मानकर मुझ पर गोली चलाए कि वह एक दुष्ट 

उपरोक्त गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नो के उत्तर लिखिए-

(क) इस गद्यांश को उचित शीर्षक लिखिए।
उत्तर
. गद्यांश का उचित शीर्षक-‘सच्चे अहिंसावादी गांधी जी।

(ख) महात्मा गांधी सच्ची अहिंसा के लिए मनुष्य में किस गुण का होना आवश्यक मानते हैं ? इस प्रकार की अहिंसा को उन्होंने क्या नाम दिया है ?
उत्तर
. महात्मा गाँधी मानते हैं कि सच्ची अहिंसा के लिए मनुष्य में निर्भीकता का होना आवश्यक है। इस प्रकार की अहिंसा को उन्होंने बहादुरों की अहिंसा का नाम दिया है। शस्त्रधारी मनुष्य के मन में कायरता या भीरुता हो सकती है किन्तु सच्चा अहिंसक व्यक्ति सदा निर्भय होता है।

(ग) गांधीजी को किस प्रकार मरना पसन्द था ?
उत्तर
. गाँधीजी को अपना कर्तव्य-पालन करते हुए मरना पसन्द था। वह अपनी शक्ति क्षीण होने से अपंग बनकर एक हारे हुए आदमी की तरह मरना नहीं चाहते थे । वह अपने हत्यारे को क्षमा करके, ईश्वर की मूर्ति अपने मन में धारण कर तथा ईश्वर का नाम लेते हुए मरना चाहते थे।

(घ) शस्त्र-सज्जित का विग्रह करके समास का नाम लिखिए
उत्तर
. शस्त्र-सज्जित-विग्रह-शस्त्र से सज्जित। समास का नाम – तत्पुरुष।


04 निम्नलिखित अपठित गद्यांश को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों का उत्तर दें :

दु:ख के वर्ग में जो स्थान भय का है, वही स्थान आनन्द-वर्ग में उत्साह का है। भय में हम प्रस्तुत कठिन स्थिति के नियम से विशेष रूप में दुखी और कभी-कभी उस स्थिति से अपने को दूर रखने के लिए प्रयत्नवान् भी होते हैं । उत्साह में हम आने वाली कठिन स्थिति के भीतर साहस के अवसर के निश्चय द्वारा प्रस्तुत कर्म-सुख की उमंग से अवश्य प्रयत्नवान् होते हैं। उत्साह में कष्ट या हानि सहन करने की दृढ़ता के साथ-साथ कर्म में प्रवृत्त होने के आनन्द का योग रहता है । साहसपूर्ण आनन्द की उमंग का नाम उत्साह है । कर्म-सौंदर्य के उपासक ही सच्चे उत्साही कहलाते हैं।

जिन कर्मों में किसी प्रकार का कष्ट या हानि सहने का साहस अपेक्षित होता है, उन सबके प्रति उत्कण्ठापूर्ण आनन्द उत्साह के अन्तर्गत लिया जाता है । कष्ट या हानि के भेद के अनुसार उत्साह के भी भेद हो जाते हैं । साहित्य-मीमांसकों ने इसी दृष्टि से युद्ध-वीर, दान-वीर, दया-वीर इत्यादि भेद किए हैं। इनमें सबसे प्राचीन और प्रधान युद्ध वीरता है, जिसमें आघात, पीड़ा या मृत्यु की परवाह नहीं रहती । इस प्रकार की वीरता का प्रयोजन अत्यन्त प्राचीन काल से होता चला आ रहा है, जिसमें साहस और प्रयत्न दोनों चरम उत्कर्ष पर। पहुँचते हैं। साहस में ही उत्साह का स्वरूप स्फुरित नहीं होता। उसके साथ आनन्दपूर्ण प्रयत्न या उसकी उत्कण्ठा का योग चाहिए । बिना बेहोश हुए भारी फोड़ा चिराने को तैयार होना साहस कहा जाएगा, पर उत्साह नहीं। इसी प्रकार चुपचाप बिना हाथ-पैर हिलाये, घोर प्रहार सहने के लिए तैयार रहना साहस और कठिन प्रहार सहकर भी जगह से ना हटना धीरता कही जायेगी । ऐसे साहस और धीरता को उत्साह के अन्तर्गत तभी ले सकते हैं, जबकि साहसी या धीर उस काम को आनन्द के साथ करता चला जायेगा जिसके कारण उसे इतने प्रहार सहने पड़ते हैं । सारांश यह है कि आनन्दपूर्ण प्रयत्न या उसकी उत्कण्ठा में ही उत्साह का दर्शन होता है, केवल कष्ट सहने में या निश्चेष्ट साहस में नहीं । धृति और साहस दोनों का उत्साह के बीच संचरण होता है

उपरोक्त गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नो के उत्तर लिखिए-

(क) प्रस्तुत गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
उत्तर
. गद्यांश का उचित शीर्षकउत्साह’।।

(ख) उत्साह क्या है तथा उत्साही किसको कहते हैं?
उत्तर
. उत्साह साहसपूर्ण आनन्द की उमंग को कहते हैं। उत्साह में कष्टों को दृढ़तापूर्वक सहन करना तथा कर्म में लगने के आनन्द-दोनों ही पाए जाते हैं। कष्ट सहन करते हुए कार्य में लगे रहकर आनन्द का अनुभव करने वाले को उत्साही कहते हैं।

(ग) साहस और धीरता को उत्साह के अन्तर्गत किस दशा में लिया जा सकता है ?
उत्तर
. साहस और धीरता को उत्साह के अन्तर्गत तभी लिया जा सकता है जब कोई साहसी और धैर्यवान पुरुष किसी ऐसे काम को प्रसन्नता और आनन्द के साथ करता रहे जिसके कारण उसे बहुत कष्ट उठाने पड़े हों।

(घ) ‘अपेक्षित’ का विलोम शब्द लिखिए तथा उसका अपने वाक्य में प्रयोग कीजिए।
उत्तर
. विलोम शब्द –उपेक्षित। प्रयोग – उपेक्षित और तिरस्कृत जीवन से मृत्यु अच्छी है।


05 निम्नलिखित अपठित गद्यांश को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों का उत्तर दें :

सिने जगत के अनेक नायक-नायिकाओं, गीतकारों, कहानीकारों और निर्देशकों को हिंदी के माध्यम से पहचान मिली है। यही कारण है कि गैर-हिंदी भाषी कलाकार भी हिंदी की ओर आए हैं। समय और समाज के उभरते सच को परदे पर पूरी अर्थवत्ता में धारण करने वाले ये लोग दिखावे के लिए भले ही अंग्रेजी के आग्रही हों, लेकिन बुनियादी और ज़मीनी हक़ीकत यही है कि इनकी पूँजी, इनकी प्रतिष्ठा का एकमात्र निमित्त हिंदी ही है।

लाखों करोड़ों दिलों की धड़कनों पर राज करने वाले ये सितारे हिंदी फ़िल्म और भाषा के सबसे बड़े प्रतिनिधि हैं। ‘छोटा परदा’ ने आम जनता के घरों में अपना मुकाम बनाया तो लगा हिंदी आम भारतीय की जीवन-शैली बन गई। हमारे आद्यग्रंथों-रामायण और महाभारत को जब हिंदी में प्रस्तुत किया गया तो सड़कों का कोलाहल सन्नाटे में बदल गया। ‘बुनियाद’ और ‘हम लोग’ से शुरू हुआ सोप ऑपेरा का दौर हो या सास-बहू धारावाहिकों का, ये सभी हिंदी की रचनात्मकता और उर्वरता के प्रमाण हैं।

‘कौन बनेगा करोड़पति’ से करोड़पति चाहे जो बने हों, पर सदी के महानायक की हिंदी हर दिल की धड़कन और हर धड़कन की भाषा बन गई। सुर और संगीत की प्रतियोगिताओं में कर्नाटक, गुजरात, महाराष्ट्र, असम, सिक्किम जैसे गैर-हिंदी क्षेत्रों के कालाकारों ने हिंदी गीतों के माध्यम से पहचान बनाई। ज्ञान गंभीर ‘डिस्कवरी’ चैनल हो या बच्चों को रिझाने-लुभाने वाला ‘टॉम ऐंड जेरी’-इनकी हिंदी उच्चारण की मिठास और गुणवत्ता अद्भुत, प्रभावी और ग्राह्य है। धर्म-संस्कृति, कला-कौशल, ज्ञान-विज्ञान-सभी कार्यक्रम हिंदी की संप्रेषणीयता के प्रमाण हैं।

उपरोक्त गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नो के उत्तर लिखिए-

(क) उपर्युक्त अवतरण के लिए एक उपयुक्त शीर्षक दीजिए।
उत्तर
. शीर्षक- मनोरंजन व हिंदी।

(ख) गैर-हिंदी भाषी कलाकारों के हिंदी सिनेमा में आने के दो कारणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
. गैर-हिंदी भाषी कलाकारों के हिंदी सिनेमा में आने के दो कारण हैं-(क) प्रतिष्ठा मिलना (ख) अत्यधिक धन मिलना।

(ग) छोटा परदा से क्या तात्पर्य है ? इसका आम जन-जीवन की भाषा पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर
. ‘छोटा परदा’ से तात्पर्य दूरदर्शन से है। इसका आम जनजीवन की भाषा पर अत्यधिक प्रभाव पड़ा है। इसके माध्यम से हिंदी का प्रसार हुआ।

(घ) आशय स्पष्ट कीजिए-सड़कों का कोलाहल सन्नाटे में बदल गया।
उत्तर
. इसका आशय है कि जब दूरदर्शन पर रामायण व महाभारत को सीरियलों के रूप में दिखाया जाता था तो आम व्यक्ति अपने सभी काम छोड़कर इन कार्यक्रमों को देखता था। यह दूरदर्शन के आम आदमी पर प्रभाव को दिखाता है।

(ङ) कुछ बहुप्रचलित और लोकप्रिय धारावाहिकों के उल्लेख से लेखक क्या सिद्ध करना चाहता है ?
उत्तर
. कुछ बहुप्रचलित तथा लोकप्रिय धारावाहिकों के उल्लेख से लेखक सिद्ध करना चाहता है कि इन धारावाहिकों की लोकप्रियता का कारण हिंदी था।

(च) ‘सदी का महानायक’ से लेखक का संकेत किस फ़िल्मी सितारे की ओर है?
उत्तर
. ‘सदी का महानायक’ से लेखक का संकेत अमिताभ बच्चन की ओर है।

(छ) फ़िल्म और टी०वी० ने हिंदी के प्रचार-प्रसार में क्या भूमिका निभाई है? संक्षेप में लिखिए।
उत्तर
. फ़िल्म व टी०वी० ने हिंदी को जन-जन में लोकप्रिय बनाया। इससे राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा मिला तथा हिंदी में कार्य बढ़ा।


06 निम्नलिखित अपठित गद्यांश को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों का उत्तर दें :

भविष्य की दुनिया पर ज्ञान और ज्ञानवानों का अधिकार होगा। इसलिए शैक्षिक नीतियों को उन मूलभूत संरचनात्मक परिवर्तनों का अभिन्न अंग होना चाहिए जिनके बिना नई अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था सपना मात्र रह जाएगी। इसका लक्ष्य उन भाग्यवादी विचारों का सफाया होना चाहिए जो यह प्रचारित करते हैं कि निर्धनता प्रकृति की देन है और यह कि अभावग्रस्त लोगों को उसी तरह निर्धनता को सहना चाहिए जैसे कि प्राकृतिक आपदाओं को। उन लोगों की बदधि ठीक करनी चाहिए जो निर्धनता की खोखली आध्यात्मिकता में आत्मतोष ढूँढ़ते हैं और उनको भी जो समृद्धि को उपभोक्तावादी संस्कृति में जीवन का अर्थ और उद्देश्य देखते हैं।

नई अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था के निर्माण में शिक्षा को महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानी है। जब तक इन भविष्यवादी प्रतिमानों की इस भयंकर सीमा को दूर नहीं किया जाता, दुनिया दो नहीं, तीन भागों में बँटकर रह जाएगी जिसकी ओर यूनेस्को के एक अध्ययन ने ध्यान दिलाया है : “सबसे नीचे प्राथमिक (बेसिक) शिक्षा और वंशगत कार्य तथा निर्वाहमूलक श्रमवाले देश होंगे; बीच में व्यावसायिक शिक्षा सहित माध्यमिक शिक्षा के स्तर तक के, कुछ साधारण छंटाई-सफ़ाई (प्रोसेसिंग) करने वाले देश होंगे तथा सबसे ऊपर वे देश होंगे जहाँ हर व्यक्ति किसी विश्वविद्यालय का स्नातक होगा और विशालकाय वैज्ञानिक प्रौद्योगिकी आधारवाले अत्यंत शोधमूलक उदयोगों में कार्य कर रहा होगा।”

आधुनिक युग की त्रासदी यह है कि तीसरी दुनिया इस समय भी तीसरी और चौथी दुनियाओं में बँटती चली जा रही है और विकासशील देश अल्पविकसित और अल्पतमविकसित देशों में बँट रहे हैं। असमानता को फैलाने की इस प्रक्रिया में दुर्भाग्य से शिक्षाप्रणाली महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।

उपरोक्त गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नो के उत्तर लिखिए-

(क) उपर्युक्त गद्यांश के लिए एक उपयुक्त शीर्षक दीजिए।
उत्तर
. शीर्षक-शिक्षा प्रणाली और असमानता।

(ख) नई अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था कब सपना मात्र रह जाएगी?
उत्तर
. नई अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था तब सपना मात्र रह जाएगी जब तक शैक्षिक नीतियों को मूलभूत संरचनात्मक परिवर्तन का अभिन्न अंग नहीं बना दिया जाएगा।

(ग) शिक्षा के क्षेत्र में भाग्यवादी विचार क्या प्रचारित करते हैं?
उत्तर
. शिक्षा के क्षेत्र में भाग्यवादी यह प्रचार करते हैं कि निर्धनता प्रकृति की देन है। गरीब लोगों को निर्धनता उसी तरह सहन करनी चाहिए जैसे कि प्राकृतिक आपदाओं को सहन करते हैं।

(घ) लेखक किन लोगों की बुद्धि ठीक करने की बात करता है? क्यों?
उत्तर
. लेखक उन लोगों की बुद्धि ठीक करने की बात करता है जो निर्धनता की खोखली आध्यात्मिकता में आत्मतोष ढूँढ़ते हैं और उनको भी जो समृद्धि को उपभोक्तावादी संस्कृति में जीवन का अर्थ और उद्देश्य देखते हैं।

(ङ) भविष्यवादी प्रतिमानों को ठीक न करने का मुख्य परिणाम क्या होगा?
उत्तर
. भविष्यवादी प्रतिमानों को ठीक न करने का मुख्य परिणाम यह होगा कि दुनिया दो नहीं तीन भागों में बँटकर रह जाएगी।

(च) यूनेस्को ने अपने अध्ययन में क्या आशंका जताई है?
उत्तर
. यूनेस्को ने आशंका जताई कि सबसे नीचे प्राथमिक शिक्षा और वंशगत कार्य तथा निर्वाहमूलक श्रमवाले देश होंगे, बीच में व्यावसायिक शिक्षा सहित माध्यमिक शिक्षा के स्तर तक के कुछ साधारण छंटाई-सफ़ाई करने वाले देश होंगे तथा सबसे ऊपर वे देश होंगे जहाँ हर व्यक्ति स्नातक होगा तथा विशालकाय वैज्ञानिक प्रौद्योगिकी आधारवाले शोधमूलक उद्योगों में कार्य कर रहा होगा।

(छ) आधुनिक युग की त्रासदी किसे कहा गया है? क्यों?
उत्तर
. आधुनिक युग की त्रासदी यह है कि तीसरी दुनिया भी तीसरी व चौथी दुनिया में बँट रही है क्योंकि शिक्षा प्रणाली को वे अपना नहीं रहे हैं।


07 निम्नलिखित अपठित गद्यांश को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों का उत्तर दें :

विषमता शोषण की जननी है। समाज में जितनी विषमता होगी, सामान्यतया शोषण उतना ही अधिक होगा। चूँकि हमारे देश में सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक व सांस्कृतिक असमानताएँ अधिक हैं जिसकी वजह से एक व्यक्ति एक स्थान पर शोषक तथा वही दूसरे स्थान पर शोषित होता है चूँकि जब बात उपभोक्ता संरक्षण की हो तब पहला प्रश्न यह उठता है कि उपभोक ता किसे कहते हैं? या उपभोक्ता की परिभाषा क्या है? सामान्यतः उस व्यक्ति या व्यक्ति समूह को उपभोक्ता कहा जाता है जो सीधे तौर पर किन्हीं भी वस्तुओं अथवा सेवाओं का उपयोग करते हैं। इस प्रकार सभी व्यक्ति किसी-न-किसी रूप में शोषण का शिकार अवश्य होते हैं।

हमारे देश में ऐसे अशिक्षित, सामाजिक एवं आर्थिक रूप से दुर्बल अशक्त लोगों की भीड है जो शहर की मलिन बस्तियों में, फुटपाथ पर, सड़क तथा रेलवे लाइन के किनारे, गंदे नालों के किनारे झोंपड़ी डालकर अथवा किसी भी अन्य तरह से अपना जीवन-यापन कर रहे हैं। वे दुनिया के सबसे बड़े प्रजातांत्रिक देशों की समाजोपायोगी उर्ध्वमुखी योजनाओं से वंचित हैं, जिन्हें आधुनिक सफ़ेदपोशों, व्यापारियों, नौकरशाहों एवं तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग ने मिलकर बाँट लिया है। सही मायने में शोषण इन्हीं की देन है।

उपभोक्ता शोषण का तात्पर्य केवल उत्पादकता व व्यापारियों द्वारा किए गए शोषण से ही लिया जाता है जबकि इसके क्षेत्र में वस्तुएँ एवं सेवाएँ दोनों ही सम्मिलित हैं, जिनके अंतर्गत डॉक्टर, शिक्षक, प्रशासनिक अधिकारी, वकील सभी आते हैं। इन सबने शोषण के क्षेत्र में जो कीर्तिमान बनाए हैं वे वास्तव में गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में दर्ज कराने लायक हैं।

उपरोक्त गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नो के उत्तर लिखिए-

(क) द्यांश का समुचित शीर्षक लिखिए।
उत्तर
. शीर्षक-उपभोक्ता शोषण।

(ख) ‘ऊर्ध्वमुखी योजनाओं से वंचित है’-वाक्य का आशय समझाइए।
उत्तर
. इस वाक्य का आशय है कि भारत में गरीब व अधिकारहीन लोग अपने अधिकारों के प्रति जागरूक नहीं है। अत: वे शोषण के शिकार होते हैं। इस कारण वे देश के विकास के लिए बनी योजनाओं के लाभों से वंचित रहते है।

(ग) विषमता शोषण की जननी है’-कैसे? स्पष्ट कीजिए
उत्तर
. विषमता के कारण शोषण का जन्म होता है। समाज में धन, सत्ता, धर्म आदि के आधार पर लोग बँटे हुए है। समर्थ व्यक्ति दूसरे का शोषण कर स्वयं को बड़ा दर्शाता है। हर व्यक्ति एक जगह शोषक है दूसरी जगह शोषित।

(घ) उपभोक्ता शोषण से क्या आशय है? इसकी सीमाएँ कहाँ तक हैं ?
उत्तर
. वस्तुओं और सेवाओं का उपभोग करने वाला उपभोक्ता होता है। व्यापारी, उत्पादक, सेवा प्रदाता वर्ग उपभोक्ता को गुमराह कर ठगते है। इस शोषण में डॉक्टर, अफसर, दुकानदार, कंपनियाँ, वकील आदि सभी शामिल है।

(ङ) देश की समाजोपयोगी योजनाओं से कौन-सा वर्ग वंचित रह जाता है और क्यों?
उत्तर
. देश की समाजोपयोगी योजनाओं से अशिक्षित, सामाजिक व आर्थिक रूप से पिछड़ा वर्ग वंचित रह जाता है क्योंकि वे सिर्फ जीवनयापन तक ही सोचते हैं। योजनाओं के लाभ अफसर, व्यवसायी व नेता लोग मिलकर खा जाते हैं।

(च) उपभोक्ता किसे कहते हैं ? उपभोक्ता शोषण का मुख्य कारण क्या है?
उत्तर
. जो वस्तुओं व सेवाओं का उपभोग करें, उसे उपभोक्ता कहते है। अज्ञानता, अशक्तता आदि के कारण उपभोक्ता शोषित होता है।

(छ) सामान्यतः शोषण का दोषी किसे कहा जाता है और क्यों?
उत्तर
. सामान्यतः शोषण का दोषी सफेदपोश राजनीतिज्ञों, नौकरशाहों, व्यापारियों व तथाकथित बुद्धिजीवियों को माना जाता है क्योंक वे अपने सामर्थ्य के बल पर सरकारी योजनाओं के लाभ स्वयं ले लेते हैं।


08 निम्नलिखित अपठित गद्यांश को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों का उत्तर दें :

राष्ट्र केवल ज़मीन का टुकड़ा ही नहीं बल्कि हमारी सांस्कृतिक विरासत होती है जो हमें अपने पूर्वजों से परंपरा के रूप में प्राप्त होती है। जिसमें हम बड़े होते हैं, शिक्षा पाते हैं और साँस लेते हैं-हमारा अपना राष्ट्र कहलाता है और उसकी पराधीनता व्यक्ति की परतंत्रता की पहली सीढ़ी होती है। ऐसे ही स्वतंत्र राष्ट्र की सीमाओं में जन्म लेने वाले व्यक्ति का धर्म, जाति, भाषा या संप्रदाय कुछ भी हो, आपस में स्नेह होना स्वाभाविक है। राष्ट्र के लिए जीना और काम करना, उसकी स्वतंत्रता तथा विकास के लिए काम करने की भावना राष्ट्रीयता कहलाती है।

जब व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति से धर्म, जाति, कुल आदि के आधार पर व्यवहार करता है तो उसकी दृष्टि संकुचित हो जाती है। राष्ट्रीयता की अनिवार्य शर्त है-देश को प्राथमिकता, भले ही हमें ‘स्व’ को मिटाना पड़े। महात्मा गांधी, तिलक, सुभाषचन्द्र बोस आदि के कार्यों से पता चलता है कि राष्ट्रीयता की भावना के कारण उन्हें अनगिनत कष्ट उठाने पड़े किंतु वे अपने निश्चय में अटल रहे। व्यक्ति को निजी अस्तित्व कायम रखने के लिए पारस्परिक सभी सीमाओं की बाधाओं को भुलाकर कार्य करना चाहिए तभी उसकी नीतियाँ-रीतियाँ राष्ट्रीय कही जा सकती हैं।

जब-जब भारत में फूट पड़ी, तब-तब विदेशियों ने शासन किया। चाहे जातिगत भेदभाव हो या भाषागत-तीसरा व्यक्ति उससे लाभ उठाने का अवश्य यत्न करेगा। आज देश में अनेक प्रकार के आंदोलन चल रहे हैं। कहीं भाषा को लेकर संघर्ष हो रहा है तो कहीं धर्म या क्षेत्र के नाम पर लोगों को निकाला जा रहा है जिसका परिणाम हमारे सामने है। आदमी अपने अहं में सिमटता जा रहा है। फलस्वरूप राष्ट्रीय बोध का अभाव परिलक्षित हो रहा है।

उपरोक्त गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नो के उत्तर लिखिए-

(क) गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
उत्तर
. शीर्षक-राष्ट्र और राष्ट्रीयता।

(ख)‘स्व’ से क्या तात्पर्य है, उसे मिटाना क्यों आवश्यक है?
उत्तर
. ‘स्व’ से तात्पर्य है-अपना। केवल अपने बारे में सोचने वाले व्यक्ति की दृष्टि संकुचित होती है। वह राष्ट्र का विकास नहीं कर सकता। अतः ‘स्व’ को मिटाना आवश्यक है।

(ग) आशय स्पष्ट कीजिए-“राष्ट्र केवल ज़मीन का टुकड़ा ही नहीं बल्कि हमारी सांस्कृतिक विरासत भी है।”
उत्तर
. इसका अर्थ है कि राष्ट्र केवल ज़मीन का टुकड़ा नहीं है। वह व्यक्तियों से बसा हुआ क्षेत्र है जहाँ पर संस्कृति है, विचार है। वहाँ जीवनमूल्य स्थापित हो चुके होते हैं।

(घ) राष्ट्रीयता से लेखक का क्या आशय है ? गद्यांश में चर्चित दो राष्ट्रभक्तों के नाम लिखिए।
उत्तर
. राष्ट्रीयता से लेखक का आशय है कि देश के लिए जीना और काम करना, उसकी स्वतंत्रता व विकास के लिए काम करने की भवना होना। लेखक ने महात्मा गांधी व सुभाषचन्द्र बोस का नाम लिया है।

(ङ) राष्ट्रीय बोध को अभाव किन-किन रूपों में दिखाई देता है?
उत्तर
. आज देश में अनेक प्रकार के आंदोलन चल रहे हैं, कहीं भाषा के नाम पर तो कहीं धर्म या क्षेत्र के नाम पर। इसके कारण व्यक्ति अपने अहं में सिमटता जा रहा है। अतः राष्ट्रीय बोध का अभाव दिखाई दे रहा है।

(च) राष्ट्र के उत्थान में व्यक्ति का क्या स्थान है? उदाहरण सहित लिखिए।
उत्तर
. राष्ट्र के उत्थान में व्यक्ति का महत्त्वपूर्ण स्थान है। जब व्यक्ति अपने अहं को त्याग कर देश के विकास के लिए कार्य करता है तो देश की प्रगति होती है। महात्मा गांधी, तिलक, सुभाषचन्द्र बोस आदि के कार्यों से देश आजाद हुआ।

(छ) व्यक्तिगत स्वार्थ एवं राष्ट्रीय भावना परस्पर विरोधी तत्व हैं। कैसे? तर्क सहित उत्तर लिखिए।
उत्तर
. व्यक्तिगत स्वार्थ एवं राष्ट्रीय भावना परस्पर विरोधी तत्व हैं। व्यक्तिगत स्वार्थ के कारण मनुष्य अपनी जाति, धर्म, क्षेत्र आदि के बारे में सोचता है, देश के बारे में नहीं। राष्ट्रीय भावना में ‘स्व’ का त्याग करना पड़ता है। ये दोनों प्रवृत्तियाँ एक साथ नहीं हो सकतीं।


09 निम्नलिखित अपठित गद्यांश को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों का उत्तर दें :

संस्कृतियों के निर्माण में एक सीमा तक देश और जाति का योगदान रहता है। संस्कृति के मूल उपादान तो प्रायः सभी सुसंस्कृत और सभ्य देशों में एक सीमा तक समान रहते हैं, किंतु बाह्य उपादानों में अंतर अवश्य आता है। राष्ट्रीय या जातीय संस्कृति का सबसे बड़ा योगदान यही है कि वह हमें अपने राष्ट्र की परंपरा से संपृक्त बनाती है, अपनी रीति-नीति की संपदा से विच्छिन्न नहीं होने देती। आज के युग में राष्ट्रीय एवं जातीय संस्कृतियों के मिलन के अवसर अति सुलभ हो गए हैं, संस्कृतियों का पारस्परिक संघर्ष भी शुरू हो गया है। कुछ ऐसे विदेशी प्रभाव हमारे देश पर पड़ रहे हैं, जिनके आतंक ने हमें स्वयं अपनी संस्कृति के प्रति संशयालु बना दिया है। हमारी आस्था डिगने लगी है। यह हमारी वैचारिक दुर्बलता का फल हैं। अपनी संस्कृति को छोड़, विदेशी संस्कृति के विवेकहीन अनुकरण से हमारे राष्ट्रीय गौरव को जो ठेस पहुँच रही है, वह किसी राष्ट्रप्रेमी जागरूक व्यक्ति से छिपी नहीं हैं। भारतीय संस्कृति में त्याग और ग्रहण की अद्भुत क्षमता रही है। अतः आज के वैज्ञानिक युग में हम किसी भी विदेशी संस्कृति के जीवंत तत्वों को ग्रहण करने में पीछे नहीं रहना चाहेंगे, किंतु अपनी सांस्कृतिक निधि की उपेक्षा करके नहीं। यह परावलंबन राष्ट्र की गरिमा के अनुरूप नहीं है। यह स्मरण रखना चाहिए कि सूर्य की आलोकप्रदायिनी किरणों से पौधे को चाहे जितनी जीवनशक्ति मिले, किंतु अपनी ज़मीन और अपनी जड़ों के बिना कोई पौधा जीवित नहीं रह सकता। अविवेकी अनुकरण अज्ञान का ही पर्याय है।

उपरोक्त गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नो के उत्तर लिखिए-

(क) आधुनिक युग में संस्कृतियों में परस्पर संघर्ष प्रारंभ होने का प्रमुख कारण बताइए।
उत्तर
. आधुनिक युग में संस्कृतियों में परस्पर संघर्ष प्रारंभ होने का प्रमुख कारण यह है कि भिन्न संस्कृतियों के निकट आने के कारण अतिक्रमण एवं विरोध स्वाभाविक हैं।

(ख) हम अपनी संस्कृति के प्रति शंकालु क्यों हो गए हैं ?
उत्तर
. हम अपनी संस्कृति के प्रति शंकालु इसलिए हो गए हैं, क्योंकि नई पीढ़ी ने विदेशी संस्कृति के कुछ तत्वों को स्वीकार करना प्रारंभ कर दिया है।

(ग) राष्ट्रीय संस्कृति की हमारे प्रति सबसे बड़ी देन क्या है?
उत्तर
. राष्ट्रीय संस्कृति की हमारे प्रति सबसे बड़ी देन यही है कि वह हमें अपने राष्ट्र की परंपरा और रीति-नीति से जोड़े रखती है।

(घ) हम अपनी सांस्कृतिक संपदा की उपेक्षा क्यों नहीं कर सकते?
उत्तर
. हम अपनी सांस्कृतिक संपदा की उपेक्षा नहीं कर सकते, क्योंकि ऐसा करने से हम जड़विहीन पौधे के समान हो जाएँगे।

(ङ) उपर्युक्त गद्यांश के लिए एक उपयुक्त शीर्षक दीजिए।
उत्तर
. शीर्षक- भारतीय संस्कृति का वैचारिक संघर्ष।

(च) हम विदेशी संस्कृति से क्या ग्रहण कर सकते हैं तथा क्यों ?
उत्तर
. हम विदेशी संस्कृति के जीवंत तत्वों को ग्रहण कर सकते हैं, क्योंकि भारतीय संस्कृति में त्याग व ग्रहण की अद्भुत क्षमता रही है।

(छ) निर्देशानुसार उत्तर दीजिए—
प्रत्यय बताइए- जातीय , सांस्कृतिक।
उत्तर. प्रत्यय-ईय, इक
पर्यायवाची बताइए-देश , सूर्य।
उत्तर. पर्यायवाची- देश- राष्ट्र, राज्य। सूर्य- रवि, सूरज।

(ज) गद्यांश में युवाओं के किस कार्य को राष्ट्र की गरिमा के अनुकूल नहीं माना गया है तथा उन्हें क्या संदेश दिया गया है?
उत्तर.
 गद्यांश में युवाओं द्वारा विदेशी संस्कृति का अविवेकपूर्ण अंधानुकरण करना राष्ट्र की गरिमा के अनुकूल नहीं माना गया है। साथ-साथ युवाओं के लिए संदेश यह है कि उन्हें भारतीय संस्कृति की अवहेलना कर विदेशी संस्कृति का अंधानुकरण नहीं करना चाहिए।


10 निम्नलिखित अपठित गद्यांश को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों का उत्तर दें :

संस्कृति ऐसी चीज़ नहीं, जिसकी रचना दस-बीस या सौ-पचास वर्षो में की जा सकती हो। हम जो कुछ भी करते हैं, उसमें हमारी संस्कृति की झलक होती है; यहाँ तक कि हमारे उठने-बैठने, पहनने-ओढ़ने, घूमते-फिरने और रोने-हँसने से भी हमारी संस्कृति की पहचान होती है, यद्यपि हमारा कोई एक काम हमारी संस्कृति का पर्याय नहीं बन सकता। असल में, संस्कृति जाने का एक तरीका है और यह तरीका सदियों से जमा होकर उस समाज में छाया रहता है, जिसमें हम जन्म लेते हैं। इसलिए, जिस समाज में हम पैदा हुए हैं अथवा जसी समाज से मिलकर हम जी रहे हैं, उसकी संस्कृति हमारी संकृति है; यद्यपि अपने जीवन में हम जो संस्कारजमा कर रहे हैं, वे भी हमारी संस्कृति के अंग बन जाते हैं और मरने के बाद हम अन्य वस्तुओं के साथ अपनी संस्कृति की विरासत भी अपनी संतानों के लिए छोड़ जाते हैं। इसलिए, संस्कृति वह चीज मानी जाती है, जो हमारे सारे जीवन को व्यापे हुए है तथा जिसकी रचना और विकास में अनेक सदियों के अनुभवों का हाथ है। यही नही, बल्कि संस्कृति हमारा पीछा जन्म-जन्मांतर तक करती है। अपने यहाँ एक साधारण कहावत है कि जिसका जैसा संस्कार है, वैसा ही पुर्नजन्म भी होती है। जब हम किसी बालक या बालिका को बहुत तेज पाते हैं, तब अचानक कह देते हैं कि वह पूर्वजन्म का संस्कार है। संस्कार या संस्कृति, असल में, शरीर का नहीं, आत्मा का गुण है; और जबकि सभ्यता की सामग्रियों से हमारा संबंध शरीर के साथ ही छुट जाता है, तब भी हमारी संस्कृति का प्रभाव हमारी आत्मा के साथ जन्म-जन्मांतर तक चलता रहता है।

उपरोक्त गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नो के उत्तर लिखिए-

(क) उपर्युक्त गद्यांश का एक उपयुक्त शीर्षक बताइए।
उत्तर
. शीर्षक-सभ्यता और संस्कृति।

(ख) संस्कृति के बारे में लेखक क्या बताता है?
उत्तर
. संस्कृति के बारे में लेखक बताता है कि इसकी रचना दस-बीस या सौ-पचास साल में नहीं की जा सकती है। इसके बनने में सदियाँ लग जाती हैं। इसके अलावा हमारे दैनिक कार्य-व्यवहार में हमारी संस्कृति की झलक मिलती है।

(ग) स्पष्ट कीजिए कि संस्कृति जीने का एक तरीका है।
उत्तर
. मनुष्य के अत्यंत साधारण से काम, जैसे- उठने-बैठने, पहनने-ओढ़ने, घुमने-फिरने और रोने-हँसने के तरीके में भी उसकी संस्कृति की झलक मिलती है। यद्यपि किसी एक काम को संस्कृति का पर्याय नहीं कहा जा सकता है, फिर भी हमारे कामों से संस्कृति की पहचान होती है, अतः संस्कृति जीने का एक तरीका है।

(घ) संस्कृति एवं सभ्यता में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
. संस्कृति और सभ्यता का मूल अंतर यह होता है कि संस्कृति हमारे सारे जीवन में समाई हुई है। इसका प्रभाव जन्म-जन्मांतर तक देखा जा सकता है। इसका संबंध परलोक से है, जबकि सभ्यता का संबंध इसी लोक से है। इसका अनुमान व्यक्ति के जीवन-स्तर को देखकर लगाया जाता है।

(ङ) संस्कृति पूर्वजन्म का संस्कार है। इसे बताने के लिए लेखक ने क्या उदाहरण दिया है?
उत्तर
. संस्कृति पूर्वजन्म का संस्कार है, इसे बताने के लिए लेखक ने यह उदाहरण दिया है कि व्यक्ति का पुनर्जन्म भी उसके संस्कारों के अनुरूप ही होता है। जब हम किसी बालक-बालिका को बहुत तेज पाते हैं, तो कह बैठते हैं कि ये तो इसके पूर्वजन्म के संस्कार हैं।

(च) संस्कृति की रचना और विकास में अनेक सदियों के अनुभवों का हाथ है-स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
. व्यक्ति अपने जीवन में जो संस्कार जमा करता है वे संस्कृति के अंग बन जाते हैं। मरणोपरांत व्यक्ति अन्य वस्तुओं के अलावा इस संस्कृति को भी छोड़ जाता है, जो आगामी पीढ़ी के सारे जीवन में व्याप्त रहती है। इस तरह उसकी रचना और विकास में सदियों के अनुभवों का हाथ होता है।

(छ) संस्कृति जीने का तरीका क्यों है?
उत्तर
. व्यक्ति के उठने-बैठने, जीने के ढंग उस समाज में छाए रहते हैं, जिसमें वह जन्म लेता है। व्यक्ति अपने समाज की संस्कृति को अपनाकर जीता है, इसलिए संस्कृति जीने का तरीका है।

(ज) निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-

(i) संस्कृति जीने का तरीका है और यह तरीका सदियों से जमा होकर समाज में छाया रहता है-मिश्र वाक्य बनाइए।
उत्तर. संस्कृति जीने का वह तरीका है, जो सदियों से जमा होकर समाज में छाया रहता है।

(ii) विलोम बताइए- छाया, जीवन।
उत्तर. छाया – धूप
जीवन – मरण


11 निम्नलिखित अपठित गद्यांश को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों का उत्तर दें :

विषमता शोषण की जन है। समाज में जिन विषमता होगी, सामान्यतया शोषण उतना ही अधिक होगा। चूँकि हमार देश में सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक व सांस्कृतिक असमानताएँ अधिक हैं जिसकी वजह से एक व्यक्ति एक स्थान पर शोषक तथा वही दूसरे स्थान पर शोषित होता है। चूँकि जब बात उपभोक्ता संरक्षण की हो तब पहला प्रश्न यह उठता है कि उपभोक्ता किसे कहते हैं? या उपभोक्ता की परिभाषा क्या है? सामान्यतः उस व्यक्ति या व्यक्ति समूह को उपभोक्ता कहा जाता है जो सीधे तौर पर किन्हीं भी वस्तुओं अथवा सेवाओं का उपयोग करते हैं। इस प्रकार सभी व्यक्ति किसी-न-किसी रूप में शोषण का शिकार अवश्य होते हैं।

हमारे देश में ऐसे अशिक्षित, सामाजिक एवं आर्थिक रूप से दुर्बल अशक्त लोगों की भीड़ है जो शहर की मलिन बस्तियों में, फुटपाथ पर, सड़क तथा रेलवे लाइन के किनारे, गंदे नालों के किनारे झोंपड़ी डालकर अथवा किसी भी अन्य तरह से अपना जीवन-यापन कर रहे हैं। वे दुनिया के सबसे बड़े प्रजातांत्रिक देश की समाजोपयोगी ऊर्ध्वमुखी योजनाओं से वंचित हैं, जिन्हें आधुनिक सफ़ेदपोशों, व्यापारियों, नौकरशाहों एवं तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग ने मिलकर बाँट लिया है। सही मायने में शोषण इन्हीं की देन है।

उपभोक्ता शोषण का तात्पर्य केवल उत्पादकता व व्यापारियों द्वारा किए गए शोषण से ही लिया जाता है जबकि इसके क्षेत्र में वस्तुएँ एवं सेवाएँ दोनों ही सम्मिलित हैं, जिनके अन्तर्गत डॉक्टर, शिक्षक, प्रशासनिक अधिकारी, वकील सभी आते हैं। इन सबने शोषण के क्षेत्र में जो कीर्तिमान बनाए हैं वे वास्तव में गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रेकॉर्ड्स में दर्ज कराने लायक हैं।

उपरोक्त गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नो के उत्तर लिखिए-

(क) गद्यांश का समुचित शीर्षक लिखिए।
उत्तर
. उपभोक्ता शोषण।

(ख) ‘विषमता’ शब्द से मूल शब्द तथा प्रत्यय छाँटकर लिखिए।
उत्तर. 
मूल शब्द– सम, उपसर्ग- वि, प्रत्यय- ता।

(ग) ‘ऊर्ध्वमुखी योजनाओं से वंचित है’- वाक्य का आशय समझाइए।
उत्तर. 
‘ऊर्ध्वमुखी योजनाओं से वंचित है’- वाक्य का आशय यह है कि समास का एक वर्ग जो अशिक्षित, सामाजिक आर्थिक रूप से कमज़ोर है तथा गंदें स्थानों पर रहता है को उठाने के लिए योजनाएँ बनाई जाती हैं पर उसे उन योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता है।

(घ) ‘विषमता शोषण की जननी है’- कैसे, स्पष्ट कीजिए।
उत्तर. 
हमारे समाज में जहाँ अत्यंत गरीब, अनपढ़ लाचार और सामजिक दृष्टि से अत्यंत पिछड़े लोग हैं, वहीं अत्यंत धनी, पढ़े-लिखे, शक्ति एवं साधन संपन्न लोग हैं। इस प्रकार समाज में विषमता का बोलबाला है। यही धन-बल और साधन संपन्न लोग गरीबों की गरीबी की अनुचित फायदा उठाते हैं। इस प्रकार विषमता शोषण की जननी है।

(ङ) समाज में जितनी विषमता होगी, सामान्यतः शोषण उतना ही अधिक होगा। वाक्य-भेद लिखिए।
उत्तर.
 मिश्र वाक्य।

(च) उपभोक्ता शोषण से क्या आशय है? इसकी सीमाएँ कहाँ तक हैं?
उत्तर.
 उपभोक्ता शोषण से तात्पर्य है- उपभोक्ताओं को उनके अधिकारों से वंचित करना। इसकी सीमाएँ वस्तुओं के उत्पादन, उन तक पहुँचने और व्यापरियों द्वारा कम वस्तुएँ देने से लेकर डॉक्टर, इंजीनियर सफेदपोश, नौकरशाह और बुद्धिजीवियों की सोच तक है।

(छ) देश की समाजोपयोगी योजनाओं से कौन सा वर्ग वंचित रह जाता है और क्यों?
उत्तर.
 देश की समाजोपयोगी योजनाओं से गरीब, लाचार, अशिक्षित और कमजोर अर्थात् वह वर्ग रह जाता है, जिसकी जरुरत उसे सर्वाधिक है। यह वर्ग इन योजनाओं से इसलिए वंचित रह जाता है क्योंकि हमारे समाज के आधुनिक समाजपोश, व्यापारी, नौकरशाह तथा तथाकथित बुद्धिजीवी वर मिलकर आपस में बंदरबाँट कर लेते हैं।

(ज) उपभोक्ता किसे कहते हैं? उपभोक्ता शोषण का मुख्य कारण क्या है?
उत्तर.
 उपभोक्ता वह व्यक्ति होता है जो वस्तुओं और सेवाओं का उपयोग करता है। उपभोक्ताओं के शोषण का कारण है- उनका जागरूक न होना तथा सफेदपोश, व्यापारी नौकरशाह और तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग की नीयत में खोट होना, जिससे वे सारी योजनाओं को अपनी समझकर उनका अनुचित लाभ उठाते हैं।

(झ) सामान्यतः शोषण का दोषी किसे कहा जाता है और क्यों?
उत्तर.
 सामान्यतः शोषण को दोषी उन लोगों को कहा जाता है, जिनके हाथों प्रत्यक्ष रूप से उपभोक्ताओं को सेवाएँ प्रदान की जाती है। इस वर्ग में व्यापारी और उत्पादक आते हैं। यह वर्ग कभी कम मात्रा में वस्तुएँ देकर, कभी वस्तुओं का दाम अधिक वसूल कर शोषण करता है। इसके अलावा उत्पादक जब उपभोक्ता वर्ग के श्रम से वस्तुएँ उत्पादित करता है तब उन्हें बहुत कम मजदूरी देकर प्रत्यक्ष रूप से शोषण करता है।


12 निम्नलिखित अपठित गद्यांश को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों का उत्तर दें :

आतंकवाद एक अत्यंत भयावह समस्या है जिसमें पूरा विश्व ही जूझ रहा है। आतंकवाद केवल विकासशील या निर्धन राष्ट्रों की समस्या हो, ऐसी बात नहीं। विश्व का सबसे शक्तिशाली और समृद्ध राष्ट्र अमेरिका भी इससे बच नहीं पाया है। कुछ वर्षों पहले जिस प्रकार उस पर आतंकवादी हमला हुआ, उससे उसकी जड़े हिल गई।

‘आतंक’ कर अर्थ है – भय अथवा दहशत। अमानवीय तथा भय उत्पन्न करने वाली ऐसी गतिविधि जिसका उद्देश्य निजी स्वार्थ पूर्ति या अपना दबदबा बनाए रखने के उद्देश्य से या बदला लेने की भावना से किया गया काम हो – आतंकवाद कही जाती है। इस प्रकार आतंकवाद मूल में कुत्सित स्वार्थ वृति, घ्रणा, द्वेष, कटुता और शत्रुता की भावना विरोध की भावना होती है। अपना राजनितिक दबदबा बनाए रखना, अपने धर्म को अन्य धर्मों से श्रेष्ठ सिद्ध करने की भावना तथा कट्टर धर्माधता भी आतंकवाद को बढ़ावा देता है। आज विश्व में जिस प्रकार का आतंकवाद फल-फूल रहा है, उसके पीछे सांप्रदायिक धर्माधता एवं कट्टरता एक प्रमुख कारण है। आज विश्व में कुछ इस प्रकार के संगठन विद्द्यमान हैं जिनका उद्देश्य ही आतंकवाद को फैलाना है। वे इस आतंकवाद के सहारे ही अपना वर्चस्व सिद्ध करना चाहते हैं। इस प्रकार के संगठन युवाओं को दिशा भ्रमित करके, उन्हें धर्म, राजनीति या सांप्रदायिकता के नाम पर गुमराह करके उनके हृदय में क्रूरता, कट्टरता तथा घृणा का ज़हर घोलकर बेगुनाओं का खून भने के लिए प्रेरित बहाने में सफल हो जाते हैं। ‘फ़िदाइन’ हमले इस बात का प्रमाण हैं कि ये दिशा भ्रमित युवक अपनी जान पर खेलकर भी खून की होली खेलने में नहीं झिझकते और मासूमों का खून बहाकर भी इनका कलेजा नहीं पसीज़ता। इनका हृदय पाषाण जैसा कठोर हो जाता है, इनकी मानवीय चेतना लुप्त हो जाती है और वे किसी भी प्रकार का घिनोना कृत्या करना स्वयं को धन्य समझते हैं।

औसमां बिन लादेन जैसे आतंकवादी आज पूरे विश्व के लिए आतंक का चेहरा बने हुए है। अमेरिका को भी उसे पकड़ने में दस सालों से ज्यादा लगे। आज भी उसका आतंकी नेटवर्क पूरे विश्व में फैला हुआ है। अमेरिका के दो टावरों को ध्वस्त करने की योजना भी उसी ने बनाई थी।

भारत भी आतंकवाद से जूझता आ रहा है। पहले पंजाब में आतंकवाद पनपा। जब वहां समाप्त हुआ तो आज देश के अनेक महानगरों में फैला गया है। मुंबई बमकांड, असम के उल्फा उग्रवादी संगठन, बोडो संगठन, नागालैंड, मिजोरम,सिक्किम आदि राज्यों में नक्सली संगठन भारत की एकता, अखंडता के लिए खतरनाक गतिविधियाँ होती रहती हैं। अनेक सैनिकों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ता है। जब आतंकवादिओं ने भारतीय संसद पर ही हमला कर दिया, तो भला और कौन सा स्थान सुरक्षित होगा।

आतंकवाद के कारण ही कश्मीर के लाखों पंडित अपना घर-बार तथा व्यापर छोड़ने को विवश हुए तथा आज विस्थापितों का जीवन जीने को मजबूर हैं। जम्मू कश्मीर के आतंकवादी संगठनों को अनेक ऐसे देशों से सहायता एवं प्रशिक्षण मिलता है जो नहीं चाहते कि भारत उन्नति करे तथा एक शक्ति के रूप में उभरे। इस अमानुषिक कार्य में पडोसी देशों का भी सहयोग है, अमेरिका जानते हुए भी उन्हें सेन्य सहायता दे रहा है जिससे उसके हौंसले और बुलंद हो गये हैं। वह आतंकवाद
को बढ़ावा देने की लिए धार्मिक भावनाओं का सहारा लेते है। जम्मू में रघुनाथ मंदिर और गुजरात के अक्षरधाम मंदिर पर हुए आतंकवादी हमले इसका प्रमाण हैं।

आतंकवाद के कारण मानवता का अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया है। आतंकवाद को मिटने के लिए दृढ़ संकल्प तथा कठोर कार्यवाही आवश्यक है। यदि भारत को अपनी छाती से आतंकवाद को मिटाना है तो उसे विश्व जनमत की अवहेलना करके भी आतंकवादी प्रशिक्षण शिविरों को समूल नष्ट करना होगा तथा आतंकवाद को जड़ से उखाड़ना फेंकने के लिए जिस प्रकार की कार्यवाही की आवशयकता हो उसके लिए कृतसंकल्प होना पड़ेगा। इस समस्या का समाधान शांति से संभव नहीं है क्योंकि लातों के भूत बातों से नहीं मानते।

उपरोक्त गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नो के उत्तर लिखिए-

(क) उपरोक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए?
उत्तर
. उपरोक्त गद्यांश का उचित शीर्षक ‘आतंवाद’ है|

(ख) आतंकवाद क्या है बताइये?
उत्तर
. ‘आतंक’ कर अर्थ है – भय अथवा दहशत। अमानवीय तथा भय उत्पन्न करने वाली ऐसी गतिविधि जिसका उद्देश्य निजी स्वार्थ पूर्ति या अपना दबदबा बनाए रखने के उद्देश्य से या बदला लेने की भावना से किया जाता है – आतंकवाद कही जाती है।

(ग) हमारे देश में आतंकवाद किस प्रकार बढ़ता जा है?
उत्तर
. आतंकवाद मूल में कुत्सित स्वार्थ वृति, घ्रणा, द्वेष, कटुता और शत्रुता की भावना, विरोध की भावना होती है। अपना राजनितिक दबदबा बनाए रखना, अपने धर्म को अन्य धर्मों से श्रेष्ठ सिद्ध करने की भावना तथा कट्टर धर्माधता भी आतंकवाद को बढ़ावा देता है। आज विश्व में जिस प्रकार का आतंकवाद फल-फूल रहा है, उसके पीछे सांप्रदायिक धर्माधता एवं कट्टरता एक प्रमुख कारण है। आज विश्व में कुछ इस प्रकार के संगठन विद्द्यमान हैं जिनका उद्देश्य ही आतंकवाद को फैलाना है। वे इस आतंकवाद के सहारे ही अपना वर्चस्व सिद्ध करना चाहते हैं। इस प्रकार के संगठन युवाओं को दिशा भ्रमित करके, उन्हें धर्म, राजनीति या सांप्रदायिकता के नाम पर गुमराह करके उनके हृदय में क्रूरता, कट्टरता तथा घृणा का ज़हर घोलकर बेगुनाओं का खून भने के लिए प्रेरित बहाने में सफल हो जाते हैं।

(घ) प्रस्तुत गद्यांश के आधार पर आतंकवाद को रोकने के उपाय बताइये?
उत्तर
. आतंकवाद को मिटने के लिए दृढ़ संकल्प तथा कठोर कार्यवाही आवश्यक है। यदि भारत को अपनी छाती से आतंकवाद को मिटाना है तो उसे विश्व जनमत की अवहेलना करके भी आतंकवादी प्रशिक्षण शिविरों को समूल नष्ट करना होगा तथा आतंकवाद को जड़ से उखाड़ना फेंकने के लिए जिस प्रकार की कार्यवाही की आवशयकता हो उसके लिए कृतसंकल्प होना पड़ेगा। इस समस्या का समाधान शांति से संभव नहीं है क्योंकि लातों के भूत बातों से नहीं मानते।

(ड़) प्रशिक्षण तथा विरोध में शब्द में मूलशब्द और उपसर्ग बहाइये?
उत्तर. 
प्रशिक्षण- प्र उपसर्ग तथा शिक्षण मूलशब्द तथा विरोध- वि उपसर्ग तथा क्रोध मूलशब्द |


13 निम्नलिखित अपठित गद्यांश को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों का उत्तर दें :

विज्ञान के द्वारा मनुष्य ने जिन चमत्कारों को प्राप्त किया है, उनमें दूरदर्शन का स्थान अत्यन्त महान और उच्च है। दूरदर्शन का आविष्कार 19वीं शताब्दी के आस पास ही समझना चाहिए। टेलीविजन दूरदर्शन का अंग्रेजी नाम है। टेलीविजन का अविष्कार महान वैज्ञानिक वेयर्ड ने किया है। टेलीविजन को सर्वप्रथम लंदन में सन् 1925 में देखा गया। लंदन के बाद इसका प्रचार प्रसार इतना बढ़ता गया है कि आज यह विश्व के प्रत्येक भाग में बहुत लोकप्रिय हो गया है। भारत में टेलीविजन का आरंभ 15 सितम्बर सन् 1959 को हुआ। तत्कालीन राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद ने आकाशवाणी के टेलीविजन विभाग का उदघाटन किया था।

टेलीविजन या दूरदर्शन का शाब्दिक अर्थ है- दूर की वस्तुओं या पदार्थों का ज्यों का ज्यों आँखों द्वारा दर्शन करना। टेलीविजन का प्रवेश आज घर घर हो रहा है। इसकी लोकप्रियता के कई कारणों में से एक कारण यह है कि एक रेडियो कैबिनेट के आकार प्रकार से तनिक बड़ा होता है। इसके सभी सेट रेडियो के सेट से मिलते जुलते हैं। इसे आसानी से एक जगह से दूसरी जगह या स्थान पर ले जाया जा सकता है। इसे देखने के लिए हमें न किसी प्रकार के चश्मे या मनोभाव या अध्ययन आदि की आश्वयकताएँ पड़ती हैं। इसके लिए किसी विशेष वर्ग के दर्शक या श्रोता के चयन करने की आश्वयकता नहीं पड़ती है, अर्थात् इसे देखने वाले सभी वर्ग या श्रेणी के लोग हो सकते हैं।

टेलीविजन हमारे जीवन के प्रत्येक क्षेत्र को बड़ी ही गंभीरतापूर्वक प्रभावित करता है। यह हमारे जीवन के काम आने वाली हर वस्तु या पदार्थ की न केवल जानकारी देता है अपितु उनके कार्य-व्यापार, नीति ढंग और उपाय को भी क्रमश बड़ी ही आसानीपूर्वक हमें दिखाता है। इस प्रकार से दूरदर्शन हमें एक से एक बढ़कर जीवन की समस्याओं और घटनाओं को बड़ी ही सरलता के साथ आवश्यक रूप में प्रस्तुत करता है। जीवन से सम्बन्धित ये घटनाएँ-व्यापार कार्य आदि सभी कुछ न केवल हमारे आस पास पड़ोस के ही होते हैं, अपितु दूर दराज के देशों और भागों से भी जुड़े होते हैं। ये किसी न किसी प्रकार से हमारे लिए जीवनोपयोगी ही सिद्ध होते हैं। इस दृष्टिकोण से हम यह कह सकते हैं कि दूरदर्शन हमारे लिए ज्ञान वर्द्धन का बहुत बड़ा साधन है। यह ज्ञान की सामान्य रूपरेखा से लेकर गंभीर और विशिष्ट रूपरेखा की बड़ी ही सुगमतापूर्वक प्रस्तुत करता है। इस अर्थ से दूरदर्शन हमारे घर के चूल्हा-चाकी से लेकर अंतरिक्ष के कठिन ज्ञान की पूरी पूरी जानकारी देता रहता है।

दूरदर्शन द्वारा हमें जो ज्ञान विज्ञान प्राप्त होते हैं। उनमें कृषि के ज्ञान विज्ञान का कम स्थान नहीं है। आधुनिक कृषि यंत्रों से होने वाली कृषि से सम्बन्धित जानकारी का लाभ शहरी कृषक से बढ़कर ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले कृषक अधिक उठाते हैं। इसी तरह से कृषि क्षेत्र में होने वाले नवीन आविष्कारों, उपयोगिताओं, विभिन्न प्रकार के बीज, पशु पक्षी, पेड़-पौधे, वनस्पतियाँ आदि का पूरा विवरण हमें दूरदर्शन से ही प्राप्त होता है।

दूरदर्शन के द्वारा पर्वों, त्योहार, मौसमों, खेल, तमाशे, नाच, गाने-बजाने, कला, संगीत, पर्यटन, व्यापार, साहित्य, धर्म, दर्शन, राजनीति आदि लोक परलोक के ज्ञान विज्ञान के रहस्य एक एक करके खुल जाते हैं। दूरदर्शन इन सभी प्रकार के तथ्यों का ज्ञान हमें प्रदान करते हुए इनकी कठिनाइयों को हमें एक एक करके बतलाता है और इसका समाधान भी करता है।

दूरदर्शन से सबसे बड़ा लाभ तो यह है कि इसके द्वारा हमारा पूर्ण रूप से मनोरंजन हो जाता है। प्रतिदिन किसी न किसी प्रकार के विषय आयोजित और प्रायोजित कार्यक्रमों के द्वारा हम अपना मनोरंजन करके विशेष उत्साह और प्ररेणा प्राप्त करते हैं। दूरदर्शन पर दिखाई जाने वाली फिल्मों से हमारा मनोरंजन तो होता ही है, इसके साथ ही साथ विविध प्रकार के दिखाए जाने वाले धारावाहिकों से भी हमारा कम मनोरंजन नहीं होता है। इसी तरह से बाल-बच्चों, वृद्धों, युवकों सहित विशेष प्रकार के शिक्षित और अशिक्षित वर्गों के लिए दिखाए जाने वाले दूरदर्शन के कार्यक्रमों से हम अपना मनोरंजन बार बार करते हैं। इससे ज्ञान प्रकाश की किरणें भी फूटती हैं।

जितनी दूरदर्शन में अच्छाई है, वहाँ उतनी उसमें बुराई भी कही जा सकती है। हम भले ही इसे सुविधा सम्पन्न होने के कारण भूल जाएँ, लेकिन दूरदर्शन के लाभों के साथ साथ इससे होने वाली कुछ ऐसी हानियाँ हैं, जिन्हें हम अनदेखी नहीं कर सकते हैं। दूरदर्शन के बार बार देखने से हमारी आँखों की रोशनी मंद होती है। इसके मनोहर और आकर्षक कार्यक्रम को छोड़कर हम अपने और इससे कहीं अधिक आवश्यक कार्यों को भूल जाते हैं। दूरदर्शन से प्रसारित कार्यक्रम कुछ तो इतने अश्लील होते हैं कि इनसे न केवल हमारे युवा पीढ़ी का मन बिगड़ता है, अपितु हमारे अबोध और नाबालिग बच्चे भी इसके दुष्प्रभाव से नहीं बच पाते हैं। दूरदर्शन के खराब होने से इसकी मरम्मत कराने में काफी खर्च भी पड़ जाते हैं। इस प्रकार दूरदर्शन से बहुत हानियाँ और बुराइयाँ हैं, फिर भी इससे लाभ अधिक हैं। यही कारण है कि यह अधिक लोकप्रिय हो रहा है।

उपरोक्त गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नो के उत्तर लिखिए-

(क) उपरोक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए|
उत्तर
. इस गद्यांश का उचित शीर्षक ‘दूरदर्शन एक वरदान’ है|

(ख) दूरदर्शन तथा टेलीविज़न का अर्थ बताइये?
उत्तर
. टेलीविजन या दूरदर्शन का शाब्दिक अर्थ है- दूर की वस्तुओं या पदार्थों का ज्यों का ज्यों आँखों द्वारा दर्शन करना। टेलीविजन का प्रवेश आज घर घर हो रहा है। इसकी लोकप्रियता के कई कारणों में से एक कारण यह है कि एक रेडियो कैबिनेट के आकार प्रकार से तनिक बड़ा होता है। इसके सभी सेट रेडियो के सेट से मिलते जुलते हैं। इसे आसानी से एक जगह से दूसरी जगह या स्थान पर ले जाया जा सकता है। इसे देखने के लिए हमें न किसी प्रकार के चश्मे या मनोभाव या अध्ययन आदि की आश्वयकताएँ पड़ती हैं।

(ग) दूरदर्शन एक वरदान के रूप में किस प्रकार है?
उत्तर
. दूरदर्शन हमारे जीवन में काम आने वाली हर वस्तु या पदार्थ की न केवल जानकारी देता है अपितु उनके कार्य-व्यापार, नीति ढंग और उपाय को भी क्रमश बड़ी ही आसानीपूर्वक हमें दिखाता है। दूरदर्शन के द्वारा हमे ज्ञान विज्ञान की बहुत सी जानकारी प्राप्त होती है| दूरदर्शन के द्वारा हम विभिन्न पर्वो, खेल -तमाशो की जानकारी प्राप्त कर सकते है| दूरदर्शन से सबसे बड़ा लाभ तो यह है कि इसके द्वारा हमारा पूर्ण रूप से मनोरंजन हो जाता है।

(घ) दूरदर्शन की कुछ हानियाँ भी है, लिखिए?
उत्तर
. दूरदर्शन के बार बार देखने से हमारी आँखों की रोशनी मंद होती है। इसके मनोहर और आकर्षक कार्यक्रम को छोड़कर हम अपने और इससे कहीं अधिक आवश्यक कार्यों को भूल जाते हैं। दूरदर्शन से प्रसारित कार्यक्रम कुछ तो इतने अश्लील होते हैं कि इनसे न केवल हमारे युवा पीढ़ी का मन बिगड़ता है, अपितु हमारे अबोध और नाबालिग बच्चे भी इसके दुष्प्रभाव से नहीं बच पाते हैं।

(ड़) दूरदर्शन का अविष्कार कब और किस ने किया?
उत्तर
. दूरदर्शन का अविष्कार 19वीं शताब्दी में हुआ| टेलीविजन का अविष्कार महान वैज्ञानिक वेयर्ड ने किया है। टेलीविजन को सर्वप्रथम लंदन में सन् 1925 में देखा गया।


14 निम्नलिखित अपठित गद्यांश को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों का उत्तर दें :

युवा उस पीढ़ी को संदर्भित करता है जिन्होंने अभी तक वयस्कता में प्रवेश नहीं किया है लेकिन वे अपनी बचपन की उम्र को पूरी कर चुके हैं। आधुनिक युवक या आज के युवा पिछली पीढ़ियों के व्यक्तियों से काफी अलग हैं। युवाओं की विचारधाराओं और संस्कृति में एक बड़ा बदलाव हुआ है। इसका समाज पर सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह का प्रभाव पड़ा है।

मानसिकता और संस्कृति में परिवर्तन के लिए एक कारण पश्चिमी संस्कृति का प्रभाव है और दूसरा तकनीक के क्षेत्र में बढ़ती उन्नति है।

पहले ज़माने के लोग एक-दूसरे की जगह पर जाते थे और साथ में अच्छा वक्त बिताते थे। जब भी कोई ज़रूरत होती थी तो पड़ोसी भी एक-दूसरे की मदद के लिए इक्कठा होते थे। हालांकि आज के युवाओं को यह भी पता नहीं है कि बगल के घर में कौन रहता है। इसका मतलब यह नहीं है कि वे लोगों से मिलना जुलना पसंद नहीं करते हैं। वे सिर्फ उन्हीं लोगों के साथ मिलते-जुलते हैं जिनसे वे सहज महसूस करते हैं और ज़रूरी नहीं कि वे केवल किसी के रिश्तेदार या पड़ोसी ही हो। तो मूल रूप से युवाओं ने आज समाज के निर्धारित मानदंडों पर संदेह जताना शुरू कर दिया है।

आधुनिक युवक अपने बुजुर्गों द्वारा निर्धारित नियमों के अनुरूप नहीं चलते हैं। वे अपने माता-पिता और अभिभावकों का साथ तो चाहते हैं लेकिन हर कदम पर उनका मार्गदर्शन नहीं चाहते। आज की युवा पीढ़ी नई चीजें सीखना चाहती है और दुनिया में खुद को तलाश करना चाहती है। आज के युवा काफी बेसब्र और उतावले भी हैं। ये लोग तुरन्त सब कुछ करना चाहते हैं और अगर चीजें उनके हिसाब से नहीं चलती हैं तो वे जल्द नाराज हो जाते हैं।

हालांकि आधुनिक युवाओं के बारे में सब कुछ नकारात्मक नहीं है। मनुष्य का मन भी समय के साथ विकसित हुआ है और युवा पीढ़ी काफी प्रतिभाशाली है। आज के युवक उत्सुक और प्रेरित हैं। आज के युवाओं का समूह काफ़ी होशियार है और अपने लक्ष्य को हासिल करना अच्छी तरह से जानता है। वे परंपराओं और अंधविश्वासों से खुद को बांधे नहीं रखते हैं। कोई भी बाधा उन्हें उन चीज़ों को प्राप्त करने से नहीं रोक सकती जो वे चाहते हैं।

प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उन्नति के साथ-साथ विभिन्न गैजेट्स के आगमन से जीवन शैली और जीवन के प्रति समग्र रवैया बदल गया है और आबादी का वह हिस्सा जो इससे सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है वह युवा है।

इन दिनों युवा अपने मोबाइल फोन और सोशल मीडिया में इतने तल्लीन रहते हैं कि वे यह भूल गए हैं कि इसके बाहर भी एक जीवन है। आज के युवा स्वयं के बारे में बहुत चिंतित होते हैं और सोशल मीडिया के माध्यम से वह सब कुछ दिखाना और बताना चाहते हैं जो उनके पास है। हर क्षण का आनंद लेने की बजाए वह यह दिखाना चाहते हैं कि उनका जीवन कैसा रहा है। ऐसा लगता है कि कोई भी वास्तव में खुश नहीं है लेकिन हर कोई दूसरे को यह बताना चाहता है कि उसका जीवन बेहद दूसरों की तुलना में अच्छा और मज़ेदार है।

मोबाइल फोन और सोशल मीडिया प्लेटफार्मों के अलावा जो आधुनिक युवाओं के जीवन पर बहुत बड़ा प्रभाव डाल रहे हैं वह है अन्य गैजेट्स और अन्य तकनीकी रूप से उन्नत उपकरण जिन्होंने लोगों की जीवन शैली में बहुत बड़ा बदलाव लाया है। आज के युवा सुबह पार्क में घूमने की बजाए जिम में कसरत करना पसंद करते हैं। इसी प्रकार जहाँ पहले ज़माने के लोग अपने स्कूल और कार्यस्थल तक पहुंचने के लिए मीलों की दूरी चलकर पूरी करते थे वही आज का युवा कार का उपयोग करना पसंद करता है भले ही उसे छोटी सी दूरी का रास्ता पूरा करना हो। सीढ़ियों के बजाए लिफ्ट का इस्तेमाल किया जा रहा है, गैस स्टोव की बजाए माइक्रोवेव और एयर फ्रायर्स में खाना पकाया जा रहा है और पार्कों की जगह मॉल पसंद किये जा रहे हैं। सारी बातों का निचोड़ निकाले तो तकनीक युवाओं को प्रकृति से दूर ले जा रही है।

पश्चिमी चकाचौंध से अंधे हो चुके भारत के युवाओं को यह एहसास नहीं है कि हमारी भारतीय संस्कृति हमेशा से बहुत अच्छी थी। हालांकि अंधविश्वासों से अपने आप को बाँधना अच्छा नहीं है लेकिन हमें हमारी संस्कृति से अच्छे संस्कार लेने चाहिए। इसी तरह किसी के जीवन में विकास के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जाना चाहिए। हमें प्रौद्योगिकी का गुलाम नहीं बनना चाहिए।

उपरोक्त गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नो के उत्तर लिखिए-

(क) उपरोक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए?
उत्तर
. उपरोक्त गद्यांश का उचित शीर्षक ‘आज का युवा’ है|

(ख) युवाओ की मानसिकता और संस्कृति में परिवर्तन के कारण बताइये?
उत्तर
. युवाओ की मानसिकता और संस्कृति में परिवर्तन का कारण पश्चिमी संस्कृति का प्रभाव है और दूसरा तकनीक के क्षेत्र में बढ़ती उन्नति है। पहले ज़माने में लोग एक दूसरे से मिलते थे और एकदूसरे के काम में हाथ बाटते, बाते करके अपनी समस्याओ को खत्म करते थे परन्तु आज का युवा अपने काम से काम रखने वाला हो चूका है आधुनिक युवक अपने बुजुर्गों द्वारा निर्धारित नियमों के अनुरूप नहीं चलते हैं। वे अपने माता-पिता और अभिभावकों का साथ तो चाहते हैं लेकिन हर कदम पर उनका मार्गदर्शन नहीं चाहते। आज की युवा पीढ़ी नई चीजें सीखना चाहती है और दुनिया में खुद को तलाश करना चाहती है। आज के युवा काफी बेसब्र और उतावले भी हैं।

(ग) आधुनिक युवा की सोच सकारत्मक किस प्रकार है?
उत्तर
. मनुष्य का मन भी समय के साथ विकसित हुआ है और युवा पीढ़ी काफी प्रतिभाशाली है। आज के युवक उत्सुक और प्रेरित हैं। आज के युवाओं का समूह काफ़ी होशियार है और अपने लक्ष्य को हासिल करना अच्छी तरह से जानता है। वे परंपराओं और अंधविश्वासों से खुद को बांधे नहीं रखते हैं। कोई भी बाधा उन्हें उन चीज़ों को प्राप्त करने से नहीं रोक सकती जो वे चाहते हैं।

(घ) प्रौद्योगिकी की उन्नति से युवाओ में क्या नकारत्मकता आई है? लिखिए|
उत्तर
. युवा अपने मोबाइल फोन और सोशल मीडिया में इतने तल्लीन रहते हैं कि वे यह भूल गए हैं कि इसके बाहर भी एक जीवन है। आज के युवा स्वयं के बारे में बहुत चिंतित होते हैं और सोशल मीडिया के माध्यम से वह सब कुछ दिखाना और बताना चाहते हैं जो उनके पास है। हर क्षण का आनंद लेने की बजाए वह यह दिखाना चाहते हैं कि उनका जीवन कैसा रहा है। ऐसा लगता है कि कोई भी वास्तव में खुश नहीं है लेकिन हर कोई दूसरे को यह बताना चाहता है कि उसका जीवन बेहद दूसरों की तुलना में अच्छा और मज़ेदार है।

(ड़) पश्चिमी चकाचौंध से अंधे हो चुके भारत के युवाओं को किस बात का एहसास होना चाहिए?
उत्तर. पश्चिमी चकाचौंध से अंधे हो चुके भारत के युवाओं को यह एहसास नहीं है कि हमारी भारतीय संस्कृति हमेशा से बहुत अच्छी थी। हालांकि अंधविश्वासों से अपने आप को बाँधना अच्छा नहीं है लेकिन हमें हमारी संस्कृति से अच्छे संस्कार लेने चाहिए। इसी तरह किसी के जीवन में विकास के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जाना चाहिए। हमें प्रौद्योगिकी का गुलाम नहीं बनना चाहिए।


15 निम्नलिखित अपठित गद्यांश को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों का उत्तर दें :

वास्तव में दिशाविहीन युवा पीढ़ी को अपने लक्ष्य का बोध शिक्षा कराती है किन्तु आज की शिक्षा इस उदेश्य की पूर्ति में मापदण्ड के घट जाने से लाचार सी हो गई है। आज शिक्षा पाकर भी युवा वर्ग बेकारी की भट्टी में झुलस रहा है। वह न अपना ही हित सोच पा रहा है और न राष्ट्र का ही। इस स्थिति में असन्तोष उसके हदय में जड़ें जमाता जा रहा है। युवा पीढ़ी में असन्तोष के कारण तथा निदान- इस असन्तोष का मुख्य कारण आज की समस्याओं का सही समाधान न होना है। आज इस रोग से देश का प्रत्येक विश्वविद्यालय पीडि़त है। आज इस असन्तोष के कारण निदान सहित इस प्रकार हैं-

राष्ट्र प्रेम का अभाव- विद्यार्थी का कार्य अध्ययन के साथ-साथ राष्ट्र जीवन का निर्माण करना भी है, किन्तु यह असन्तोष में बह जाने से भटक जाता है। देश से प्रेम करना उसका कर्तव्य होना चाहिए।

उपेक्षित एवं लक्ष्य विहीन शिक्षा- आज हदयहीन शिक्षकों के कारण युवा शक्ति उपेक्षा का विषपान कर रही है। आज सरकार की लाल फीताशाही विद्यार्थियों को और अधिक भड़का रही है। शिक्षा का दूसरा दोष उदेश्य रहित होना है। आज का युवक, शिक्षा तो ग्रहण करता है, किन्तु वह स्वयं यह नहीं जानता कि उसे शिक्षा पूर्ण करने के बाद क्या करता है। स्वतंत्र व्यवसाय के लिए कोई शिक्षा नहीं दी जाती। आज सरकार को अध्ययन के उपरांत कोई प्रशिक्षण देकर विद्यार्थी को अपने कार्य में लगाना चाहिए।

भ्रष्ट प्रशासन- आज जनता द्वारा चुने हुए एक से एक भ्रष्ट प्रतिनिधि शासन में पहुँचते हैं। चुने जाने के बाद ये प्रतिनिधि रिश्वत द्वारा धन पैदा करते हैं और जनता के दुख दर्दों को ताक पर रख देते हैं। लाल फीताशाही चाहे अत्याचार ही क्यों न करे, ये नेता इसको बढ़ावा देते हैं। फलतः युवा वर्ग में असन्तोष की लहर दौड़ जाती है।

विकृत प्रजातन्त्र- आजादी के बाद हमारे राष्ट्रीय कर्णधारों ने लोकतांत्रिक व्यवस्था को अपनाया। ये नेता भ्रष्ट तरीकों से अनाप शनाप धन व्यय कर शासन में पहुँचते हैं। फिर स्वयं को जनता का प्रतिनिधि न समझकर राजपुत्र को नम्रतापूर्वक छात्रों को समझाकर किसी उत्पन्न समस्या का समाधान करना चाहिए।

विकृत चलचित्र जगत- आज चलचित्र जगत बड़ा ही दूषित है। आज हर चित्र में मार धाड़ और कामुकता तथा जोश के चित्र दिखाए जाते हैं। वस्तुतः चलचित्र का उपयोग विद्यार्थी को ज्ञान तथा अन्य विषयों की शिक्षा के लिए होना चाहिए।

समाचार पत्र तथा आकाशवाणी- ये दोनों युवापीढ़ी के लिए वरदान के साथ साथ अभिशाप भी हैं। जहाँ एक विश्वविद्यालय के विद्यार्थी असन्तुष्ट हुए, वहाँ समाचार पत्रों एवं आकाशवाणी के माध्यम से यह खबर सभी जगह फैल जाती है, जिससे युवा पीढ़ी में आक्रोश भड़क उठता है। सरकार को ऐसे समाचार पत्रों पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए।

आज शासन सत्ता के विरोधी दल विश्वविद्यालयों के विद्यार्थियों को भड़काकर अपना उल्लू सीधा करने में लगे हैं।

सांस्कृतिक संस्कारों का अभाव- आज युवा पीढ़ी में सांस्कृतिक संस्कारों का अभाव है। जिनके कारण वे दूसरों को अपने से अलग समझकर उन पर आक्रोश करते हैं। अतः विश्वविद्यालयों में भी नैतिक शिक्षा अनिवार्य होनी चाहिए।

आज के युग में विश्व स्तर पर भारत को रखकर शिक्षा प्रणाली विश्व में सबसे अधिक है। इसलिए हमारे राष्ट्र निर्माताओं को यह दृढ़ संकल्प कर लेना चाहिए कि वे विश्वविद्यालयों का सुधार करें, ताकि युवा पीढ़ी में असन्तोष न बढ़ सके।

उपरोक्त गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नो के उत्तर लिखिए-

(क) उपरोक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए|
उत्तर. इस गद्यांश का उचित शीर्षक ‘युवा पीढ़ी में अशंतोष’ है|

(ख) आज की युवा पीढ़ी में असंतोष के कारण लिखिए?
उत्तर. युवा पीढ़ी में असंतोष के कारण है- राष्ट्र प्रेम का आभाव, उपेक्षित एवं लक्ष्य विहीन शिक्षा, भ्रष्ट प्रशासन, विकृत प्रजातन्त्र, विकृत चलचित्र जगत, समाचार पत्र तथा आकाशवाणी, सांस्कृतिक संस्कारों का अभाव|

(ग) भ्रष्ट प्रशासन के कारण युवा पीढ़ी में असंतोष किस प्रकार उत्पन्न हो रहा है?
उत्तर. जनता द्वारा चुने हुए भ्रष्ट प्रतिनिधि शासन में पहुँचते हैं। चुने जाने के बाद ये प्रतिनिधि रिश्वत द्वारा धन पैदा करते हैं और जनता के दुख दर्दों को ताक पर रख देते हैं। लाल फीताशाही चाहे अत्याचार ही क्यों न करे, ये नेता इसको बढ़ावा देते हैं। फलतः युवा वर्ग में असन्तोष की लहर दौड़ जाती है।

(घ) युवा पीढ़ी में बढ़ते असंतोष को दूर करने के लिए क्या करना चाहिए?
उत्तर.  युवा पीढ़ी में असंतोष को दूर करने का लिए

(1) युवाओ में देश प्रेम की भावना उत्पन्न करना|
(2) सरकार को अध्ययन के उपरांत कोई प्रशिक्षण देकर विद्यार्थी को अपने कार्य में लगाना चाहिए।
(3) भ्रष्टाचार को समाप्त करना
(4) छात्रों को समझाकर किसी उत्पन्न समस्या का समाधान करना चाहिए।
(5) चलचित्र का उपयोग विद्यार्थी को ज्ञान तथा अन्य विषयों की शिक्षा के लिए होना चाहिए।

(ड़) ‘प्रशासन’ और ‘प्रतिनिधि’ शब्द में उपसर्ग तथा मूल शब्द बताइये|
उत्तर.  (1) ‘प्र’ उपसर्ग ‘शासन’ मूलशब्द 
(2) ‘प्रति’ उपसर्ग ‘निधि’ मूलशब्द|


Unseen Passage for Class 12
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FAQ: Frequently Asked Questions-Unseen Passage for class 12

Q.1 How do I manage time in unseen passage class 12?

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Q.2: What is the difference between seen and unseen passage​ class 12?

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Q.3: How do we score high marks in unseen passage class 12?

Answer: Study the question before reading the passage. After that, read the passage and highlight the word which you find related to the question and a line before that word and one after that. With this strategy, you will be able to solve most questions and score higher marks in your exam.

Q.4: What precaution should we take before writing the answer in the unseen passage class 12?

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Q.5: How will I prepare myself to solve the unseen passage class 12?

Answer: In the Exam, you will be given a small part of any story and you need to answer them to score good marks in your score. So firstly understand what question is being asked. Then, go to the passage and try to find the clue for your question. Read all the alternatives very carefully. Do not write the answer until you feel that you have selected the correct answer.

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