Harivansh Rai Bachchan Poems Aatmika | आत्मिका – हरिवंश राय बच्चन की अमर कविता

Harivansh Rai Bachchan Poems Aatmika: आत्मिका वह कविता है जो हरिवंश राय बच्चन को एक महान कवि के रूप में प्रसिद्ध करती है। इस कविता में उन्होंने आध्यात्मिक भावों को सुंदरता के साथ व्यक्त किया है और हमें अपनी आत्मा से जुड़ने का संदेश दिया है। यहां हम इस आत्मिका के बारे में विस्तृतता से चर्चा करेंगे:

Harivansh Rai Bachchan Poems Aatmika | आत्मिका – हरिवंश राय बच्चन की अमर कविता
Harivansh Rai Bachchan Poems Aatmika | आत्मिका – हरिवंश राय बच्चन की अमर कविता

आध्यात्मिक उद्दीपना:

आत्मिका एक आध्यात्मिक उद्दीपना है जो हमें अपनी आत्मा के साथ संबंध स्थापित करने की प्रेरणा देती है। इस कविता में हरिवंश राय बच्चन ने आध्यात्मिकता के अनमोल सिद्धांतों को सुंदरता के साथ प्रस्तुत किया है।

मन की शांति:

आत्मिका मन की शांति और आनंद के अनुभव को व्यक्त करती है। इस कविता में हरिवंश राय बच्चन ने अपने अंतरंग भावों को प्रकट किया है और हमें अपनी आत्मा की शक्ति से जुड़ने की प्रेरणा दी है।

सत्य और प्रेम की महिमा:

आत्मिका सत्य और प्रेम की महिमा को प्रशंसा करती है। इस कविता में हरिवंश राय बच्चन ने सत्य की महत्ता और प्रेम की ऊँचाई को दर्शाया है। यह हमें इन मूल्यों का महत्व समझाती है और जीवन को सही राह पर चलने की प्रेरणा देती है।

आत्मिका हिंदी साहित्य के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखती है। इसकी कविताएं हमें आध्यात्मिक सच्चाई को दर्शाती हैं और हमें अपनी आत्मा की गहराई को समझने की प्रेरणा देती हैं।

Harivansh Rai Bachchan Poems in Hindi Aatmika

Harivansh Rai Bachchan Poems in Hindi Aatmika
Harivansh Rai Bachchan Poems in Hindi Aatmika

आत्मिका

जब जग था अजानता, अंधकार से डरा हुआ,
आई थी एक आत्मिका, सवेरा बनकर सवेरा हुआ।

जगमगाता है सृष्टि का रंगीन चक्रवात,
अँधेरे को हर संसार में झलकता नज़र आता।

प्रकृति का अनंत सौंदर्य था इक रहस्यमय,
जिसको जानकर विराट सृष्टि हो जाती थी हयरान।

उस अनंत सौंदर्य को जानना था मेरा कर्तव्य,
मैं खोजने निकल पड़ी आत्मिका की यात्रा करती हूँ।

पहले आयी भूमि पर सुन्दरी सृष्टि का दर्शन,
वन और नदी की रचना थी तथा आकाश का ज्ञान।

फिर चली गई आकाश की ओर, उड़ते हुए पंखों से,
देखा आश्चर्यजनक ब्रह्माण्ड, विलक्षण नक्शों से।

गहरी बंधन में जब फँसी थी आत्मिका दिलधड़कती,
चली जब सूर्य की धुप में, जलते हुए तप्त होकर।

पर्वतों के मुंह से जब बारिश की बूंदें गिरतीं,
जब गंगा का पानी लेती, आनंद की गरिमा बरसाती।

हवा के ज़ोर से लहरें बनीं अपने आप झुलसतीं,
पृथ्वी को गले लगाकर थोड़ा सुकून बनतीं।

सूर्योदय और सूर्यास्त की रोशनी में ढलतीं,
स्वर्ग के नीचे आकर जीवन को नया रंग भरतीं।

प्रेम की मिठास से जब जीवन भरा होता था,
आत्मिका की यात्रा जो जीवन में आँखे खोलती थी।

अब जग रह गया ज्ञान से प्रभावित,
और सृष्टि के रहस्यों को ही वह भलीभांति जानती है।

आत्मिका ने खोज लिया अनंत सौंदर्य का रहस्य,
अब वह बसने आयी है आत्मा में, वही उसकी विश्राम स्थान।

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