आज के इस लेख में हम महाकवि तुलसीदास जी पर निबंध हिंदी में (Tulsidas Essay in Hindi) Essay on Tulsidas in Hindi पढ़ेंगे। पिछले आर्टिकल में हम ने पढ़ा Discipline Essay in Hindi | अनुशासन पर निबंध।
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Tulsidas Par Nibandh in Hindi | Tulsidas Essay in Hindi
तुलसीदास, सूरदास, मीराबाई, नंददास आदि भक्त-कवियों काव्यकृतियों के रसास्वादन करने का सुअवसर हमें मिला। किंतु महाकवि तुलसीदास की रचनाओं – रामचरितमानस, विनय पत्रिका, कवितावली में भक्ति भावना के उद्रेक की जितनी क्षमता विद्यमान है, उतनी किसी कवि की रचनाओं में नहीं।
इस क्षेत्र में महाकवि सूरदास को भी वह पीछे छोड़ देते हैं। उनकी रचनाओं में काव्य-सौष्ठव के दोनों पक्षों – भावपक्ष और कलापक्ष का अद्भुत समन्वय हुआ है।
उनकी रचनाओं में भाव की गहनता, अनुभूति की तीव्रता, सौंदर्यकण, अलंकरण और संगीत की अजस्र धारा प्रवाहित होती है, जिसमें अवगाहन करने वालों को दिव्य माधुर्य तथा भक्ति रसायन अनायास ही मिल जाता है।
गोस्वामी तुलसीदास का समस्त काव्य समन्वय का महाप्रयास है। भक्ति, नीति, दर्शन, धर्म और कला की इनकी कृतियों में अपूर्व संगम है। तुलसीदास ने अपने काव्य में आदर्श और व्यवहार का समन्वय, लोक और शास्त्र का समन्वय, गृहस्थ और वैराग्य का समन्वय उपस्थित किया है।
संस्कृत तथा लोकभाषा में प्रचलित सभी छंदों का प्रयोग इन्होंने अपनी रचनाओं में भरपूर किया है। तुलसीदास की बहुमुखी प्रतिभा का परिचय इससे अधिक और क्या हो सकता है कि एक कवि अपने समकालीन समय शैलियों के प्रयोग में सिद्धहस्त हो।
विश्वखलित भारतीय संस्कृति को इन्होंने ठोस रूप प्रदान किया। तुलसीदास का आविर्भाव जिस काल में हुआ था, भारत में वह काल परस्पर विरोधी संस्कृतियों, साधनाओं, जातियों का संधिकाल था।
देश की सामाजिक, राजनीति तथा धार्मिक स्थिति विश्वखलित हो रही थी। समाज को उचित दिशा दिखलाने वाला कोई समर्थ पुरुष दिखाई नहीं दे रहा था।
तुलसीदास ने समाज को सम्यक दिशा प्रदान की। उन्होंने अपने आराध्य देव मर्यादा-पुरुषोत्तम राम के पावन चरित्र में शौर्य, विनयशीलता, पुरुषार्थ, करुणा तथा वात्सल्य भाव आदि मानवीय गुण दोनों समवेत रूप से मुखरित हुए हैं।
यधपि महाकवि तुलसीदास के जन्म-स्थान, जन्मतिथि, माता-पिता, शिक्षा-दीक्षा आदि के संबंध में विद्वानों में मतभेद है, फिर भी अधिकांश विद्वानों ने इनका जन्म संवत 1589 के लगभग माना है तथा आत्माराम दुबे को इनका पिता और हुलसी को माता स्वीकारा है।
गुरु नरहरिदास के चरणों में रहकर उनकी शिक्षा-दीक्षा हुई। इनकी विवाह रत्नावली के साथ हुआ जिन्होंने भगवत-भक्ति की ओर प्रेरित किया। तुलसीदास सचमुच आदर्शवादी भविष्यदृस्टा थे।
अपने आदर्श चरित्रों के आधार पर उन्होंने भारतवर्ष के भावी समाज की कल्पना की थी। प्रत्येक चरित्र-चित्रण में तुलसीदास ने मानव वृतियों को गंभीरता से देखा-परखा है इसीलिए पाठक तुलसीदास द्वारा प्रतिपादित अनुभूतियों को उनके राग, वैराग्य, हास्य और रुदन को अपना ही राग-वैराग्य, हास्य और रुदन समझते हैं। यही कवि की सच्ची कला की महानता है।
अंतिम विचार – Essay on Tulsidas in Hindi
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